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समयानुसार प्रिययचन नहीं बोलने वाला मुक है।
पादहिना जनहन्यात्कटिहिनां च वाहन ।।
ज्ञात्वै वकारये ज्जैनी प्रतिमा दोप वर्जितां ॥५॥ अर्थ-पादहीन होय तौ प्रजा को हन कटिहीन होय तो वाहन को हन इस प्रकार दोष जानि अर्हत को प्रतिमा दोष वर्जित कर ॥१५॥
सामान्येनेदमा ख्यात प्रतिमा लक्षणा मया ।
विशेषत. पुनर्जेयं श्रावकाध्ययने स्फुट ॥८६।। अर्थ-सामान्यतया ये प्रतिमा का लक्षण मंने कहा है। विशेषतया श्रावकाचारादि ग्रन्थों में स्फुटतया वर्णित है वहां से देख लेगा ॥८६॥
चिन्ह कथन ऋषहादीनं चिन्हं, गोपति गज तुरंग वानरा ।। कोक पद्मनंद्यावा, अर्धशशीमगर श्रीवृक्षम् ॥१७॥ गंडा महिषवराह, सेईवज हिरणा छगरायं ॥ मोनचिन्हयुगकलशंकच्छ कमलशंखअहिसिंह ।।८८॥
प्रतिमा के वर्ण कथन। द्वौ कुंदेंदु तुषाहार धवलौ द्वाविन्द्र नील प्रभौ द्वौबंधूक सम प्रभौ जिन वृषौ द्वौच प्रियंगु प्रभौ ।। शेषाः षोडश जन्ममृत्यु रहिताः संतप्त हेमप्रभा ।। स्ते संज्ञान दिवाकराः सुरनुताः सिद्धि प्रयछंतुनः ॥६॥
उक्त च तत्तद्वर्णा विधेयास्युस्तीर्थ कृत्प्रतिमा. समाः॥
पाणी पादतले धर्म चक्र रेखा प्रकल्पयेत् ॥६॥ अर्थ-प्रतिमा जिस वर्ण को तीर्थकर की होवे,उसी रंग की प्रतिमा बनाबना चाहिए।
पाद् तल में धर्म चक्र रेखाकी कल्पना करना ।। पैर के दाहेंगूठे पर भी चिन्ह बणाव और नीचे को चौको पर चिन्ह बनवाब ॥६॥
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