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धन के संग्रह में आनन्द नहीं-उसके त्याग में आनन्द है।
लिंग का कथन दूसरा द्वयंगुलो मेद्रविस्तारो मूलेमध्येगुलं भवेत् ॥
अग्नेऽगुंल चतुर्भागो व्यासान्नाहस्त्रिसंगुलः ॥५४॥ अर्थ-लिंग का विस्तार मूल में २ भाग मध्य में १ भाग अन भाग में चतुर्थ भाग रखै तिसको गुलाई त्रिगुणी करै ॥५४॥
उक्तच लिंग पंचागुलायामं द्वयंगुलातत्ततिर्भवेत् ॥५५॥ अर्थ-लिंग ५ भाग लंबा २ भाग चौडा बरगावै ॥५५॥
समांसलौ समौकार्यों, पोत्रौ पंचागुलायतौ ।।
आमास्थि सन्निभौयुक्तौ, विस्तृतौ चतुरंगुलौ ॥५६॥ अर्थ-दोउ पोता पुष्ट व समान ५ भाग लंबा ४ भाग चौडा आम की गुठली समान करै ॥५६॥
जंघा कथन चरण तक वितस्ति द्वितयायास्त मुरु युग्मं समांसलं ॥
एकादश प्रविस्तीर्ण मूलेमध्ये नवांगुलं ॥७॥ अर्थ-२४ भाग लंबा दोउ जंघा पुष्ट करै ११ भाग तो मूल में ६ भाग मध्य में विस्तार रूप करै ।।५७॥
सप्तजानुद्वये नाहः स्वक व्यासस्त्रिसंगुणः ।
गूढे वृत्तेसुसंश्लिष्टेमांसले जानुनीसमे ॥५॥ अर्थ-७ भाग गोडा के पास चौडा कर इनकी परिधि त्रिगुरणी कर गोडा दोउ समान गोल जंघा से मिले हुए पुष्ट बणावै ॥५८॥
ततो जंघा द्वये वृत्तं वितस्ति द्वितयायतं ॥
जंघायाः पिडिका मध्ये बिस्तारः स्यात्षडंगुलः ।।५६ ॥ अर्थ-गोडा से नीचे जंघा अर्थात् पीडीगोल २४ भाग लंबी कर जंघा के मध्य पीडी का विस्तार छ भाग प्रमाण करे ॥५६॥
पंचांगुलस्त्रिभागोनो गुल्फदेशे च विस्तरः ।।
उभयोः परिधी ज्ञेयोस्वविस्तारास्त्रि संगुणौ ॥६॥ [१६०]