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विषय रूपी सेना का राजा मोह है। mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm स्तुल्यो दर्शन मोहस्यो पशमः क्षयः, क्षयोपशमो वा । तस्मिन्सति यत् बाह्योपदेशाइते प्रादुभवति तन्नैसर्गिकम्, यत्परोपदेशपूर्वक जीवा अधिगम निमित्त स्यात् तदुत्तरम्"
निसर्गज सम्यग्दर्शन और अधिगमज सम्यग्दर्शन दोनो में अन्तरग कारण (उपादान कारण) दर्शन मोहनीय कर्म का क्षयोपशम, क्षय, अथवा उपशम है । उसके होने पर बाह्य उपदेशादि के अभाव में जो होता है वह नैसर्गिक सम्यग्दर्शन है, जो परोपदेश पूर्वक जीवादि अधिगम निमित्त को पाकर होता है वह अधिगमज है । अर्थात् दोनो कारणो को लेकर सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है।
पूज्यपाद ने अनेक स्थानों पर सम्यग्दर्शन के वाह्य व अभ्यंतर कारणो का विवेचन किया
सम्यग्दर्शन के साधन का विवेचन निर्देश स्वामित्वादि सूत्र मे किया है। साधन का अर्थ उत्पत्ति निमित्त है।
वे लिखते है कि "साधन द्विविधम्, आभ्यतर बाह्य च आभ्यतरम् दर्शनमोहस्योपशमः क्षयः क्षयोपशमो वा, बाह्य नारकारणों प्राक् चतुर्थ्या सम्यग्दर्शनस्य साधन केषाचिज्जातिस्मरण, केषाचिद्धर्मश्रवण, केषाचिद्वदनामिभवः, चतुर्थोमारभ्य आसप्तम्या नारकाणा जातिस्मरणं, वेदना मिभवश्च तिरश्चां केषाचिज्जातिस्मरण, केपा च धर्मश्रवण केषांचित जिनविम्ब दर्शनम् मनुष्याणामपि तथैव, देवानां, केषाचित्जातिस्मरण, केषाचिद्धर्मश्रवणम् केषाचित् जिनमहिमा दर्शनं, केषांचित् देवद्धि दर्शनम् एवं प्रागानतात् आनत प्राणता रणाच्युत देवाना देवद्धि दर्शन मुक्त्वा अन्यत् त्रितयमप्यस्ति नव वेयक वासिनां केषाचिज्जातिस्मरण केषाचित् धर्म श्रवणम्, अनुदिशानुत्तर विमान वासिना मिद कल्पना न सभवति, प्रागेव गृहीत सम्यक्त्वानां तमोत्पत्तेः"
साधन दो प्रकार के है, एक आभ्यतर, दूसरा बाह्य । दर्शन मोहनीयका उपशम, क्षय, अथवा क्षमोपशम आभ्यंतर कारण है । बाह्य कारणो में नारकियों को चौथे नाक से पहिले पहिले बाह्य कारण किसी को जाति स्मरण है, किसी को धर्म श्रवण है किसी को वेदना की तीव्रता है । चौथे नरक से आगे सातवे नरक तक किसी को जाति स्मरण व किसी को वेदना की तीव्रता है। तिर्यञ्चों में वाह्य कारण किसो को जाति स्मरण, किसी को धर्म श्रवण वा किसी को जिन बिंबका दर्शन होना है। मनुष्यो को भी बाह्य साधन इसी प्रकार है । देवों में किसी को जाति स्मरण, किसी को धर्म श्रवण, किसो को जिन महिमा दर्शन और किसी को देवों के ऋद्धतिशय को देखना है । इस प्रकार आनत स्वर्ग से पहिले है । आनत प्राणतारण अच्युत स्वर्ग में देवऋद्यतिशय को छोड़कर अन्य बाह्य कारण पाये जाते है। नव वेयक वासियो में किसी को जाति स्मरण और किसी को धर्म श्रवण बाह्य कारण है । अनुदिश अनुत्तर विमान वासियों में यह बाह्य अभ्यतर कारणों की कल्पना नही हो सकती है क्याकि पहिले से सम्यक्त्व को प्राप्त करके ही वहा पर उत्पन्न होते है।
इससे और भी विषय स्पष्ट हो जाता है कि सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के लिये ही उपादान [२४]