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क्षमा संघम रूपी बगीचे की रक्षा करने के लिये सुदृढ़ बाढ़ है। .
जीव के परिणामो को कारण बनाकर पुद्गल कर्मत्व को प्राप्त करते है। पुद्गल कर्मों को निमित्त बनाकर जोव भी उसी प्रकार परिणमन करता है।
इस गाथा में आचार्य ने ससारी जीव के परिणाम को उन पृद्गल परमाणुओ को कर्म रूप में परिण मन करने के लिए कारण बताया है। इसी प्रकार उन पुद्गल कर्मों के निमित्त को पाकर जीव भी अपना परिणमन उस रूप में करता है। एक द्रव्य दूसरे द्रव्य के परिणमन में किस प्रकार कारण होता है इसे स्वयं कुदकुद देव ने स्वीकार किया है।
___ आस्रव तत्व को जिस प्रकार कुदकुद ने स्वीकार किया है, उसी प्रकार अन्य आचार्यो ने प्रतिपादन किया है। इसमें कोई मतभेद नही है, ऐसी स्थिति में इसमें निमित्त नैमित्तिक भाव को नही मानना, निमित्त को अकिचकर मानना यह एक स्वतंत्र मत को प्रचलित करने का प्रयास है, अनेक मिथ्यामतो के समान यह भी व्यर्थ माना जावेगा।
आस्रव व बंध तत्व की न्यूनाधिकता को व्यवस्था में भी अतरग व बहिरंग कारण माने गये है। आचार्य समंतभद्र इस सबध मे कहते है कि
दोषावरणयोहानिः निश्शेषा स्यातिशायनात् ।
क्वचिद्यया स्वहेतुभ्यो बहिरन्तमलशयः ॥ किसी जीव में दोष व आचरण का अभाव पाया जाता है। उसमें विशुद्धि या हानि पाई जाती है । गुण स्थानों के क्रम से भावो में जो विशुद्धि पाई जाती है। उन सब का कारण बाह्य व अभ्यतर दोष का नाश है। प्रत्येक कार्य में बाह्य व अभ्यतर कारण होते है।
स्वामी समतभद्र के इसी अभिप्राय का आचार्य अकलक एवं महर्षि विद्यानन्दि ने अपने प्रथों में समर्थन किया है। ऐसी स्थिति में इस कयन में आचार्य परपरा के आशय का भी ध्यान रखना चाहिये।
आचार्य पूज्यपाद सवार्थसिद्धि में उपयोग का लक्षण करते हुए कहते है कि उमय निमित्त वशादुत्पद्य मानश्चैतन्मानु विद्यायी परिणाम उपयोग., बाह्य व अभ्यतर निमित्त के कारण से उत्पन्न होने वाले चैतन्य अनुविद्यायी परिणाम का नाम उपयोग है।
आचार्य अकलंक देव ने राजवार्तिक में इसी को समर्थन करते हुये कहा है कि
बाह्याभ्यंतर हेतु द्वय सन्निधाने यथा सभवम् उपलब्ध चैतन्यानु विद्यायी परिणाम उप योगः, अर्थात् बाह्य व अभ्यतर दोनो हेतुवो के प्राप्त होने पर यथासभव आत्म परिणाम का नाम उपयोग है । इसी प्रकार क्रिया का लक्षण करते हुये आचार्य अकलक ने निरूपण किया है।
___ "उभय निमित्ता पेक्ष पर्याय विशेषो द्रव्यस्य देशांतर प्राप्ति हेतु क्रिया"। अंतरंग बहिरंग के निमित्त की अपेक्षा रखकर द्रव्य के देशातर प्राप्ति में कारण विशेष या पर्याय विशेष क्रिया कहलाती है। . [३४]