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प्रेम में सर्वश्रेष्ठ प्रेम माता का है। wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwm
पाणावरणादोरणं जोग्गंजं पुग्गलं समासवदि ।
दव्वासवो स णेओ अणेय भेओ जिणक्खादो ॥३१॥ गाथार्थः-ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों के योग्य जो पुद्गल आता है, उसको अव्यासव जानना चाहिये । वह अनेक भेदों सहित है ऐसे जिनेन्द्र ने कहा है ॥३१॥
यन्झदि कम्मं जेण दु चेदण भावेण भाव बंधो सो॥
कम्माद पदेसाणं अण्णोण्ण पवेसणं इदरों ॥३२॥ गाथार्थः-जिस चेतना भाव से कर्म बंधता है वह तो भाव बंध है, और कर्म तथा आत्मा के प्रदेशों का परस्पर प्रवेशन रूप अर्थात् कर्म और आत्मा के प्रदेशों का एकाकार होने रूप दूसरा द्रव्य बंध है।
पडिटि दि अणुभाग पदेश भेदादु चहु विधो बंधो॥
जोगा पयडिप देसा ठिदिमण भागा कसायदो होति ॥३३॥ गाथार्थ-प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश इन भेदों से बंध चार प्रकार का है। इनमें योगों से प्रकृति तथा प्रदेशबंध होते है । और कषायों से स्थिति तथा अनुभाग बंध होते है ॥३३॥
चेदणपरिणामो जो फम्मस्सासवरिणरोहणे हेदू ॥
सो भाव संवरो खलु दव्वासव रोहणे अण्णो ॥३४॥ गाथार्थ:-जो चेतन का परिणाम कर्म के आसव को रोकने में कारण है, उसको निश्चय से भाव संवर कहते है। और जो द्रव्याराव को रोकने में कारण है सो दूसरा अर्थात् द्रव्य संवर है ॥३४॥
वसमिदीगुत्तीओ धम्माणुपेहा परीसह जो य॥
चारित्तं बहु मेया गायव्वा भाव संवर विसेसा ॥३५॥ गाथार्थ-पांच व्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति, दश धर्म, बारह अनुप्रेक्षा, बाइस परीषहों का जय तथा अनेक प्रकार का चारित्र इस प्रकार ये सब भाव संवर के भेद जानने चाहिये ॥३॥
जह कालेण तवेण य भुत्तरसं कम्म पुग्गलं गेण ॥ भावेण सउदि णेयातस्सडणं चेदि णिज्जरा दुविहा ॥३६॥
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