________________
शहद को मक्खी के समान भोगों में लीन न होकर उदासीन वृत्ति से रहना चाहिये।
गाथा भावार्थः-पूर्वोक्त षट् द्रव्यों में से परिणामी द्रव्य जीव और पुद्गल ये दो हैं । चेतन द्रव्य एक जीव है, मूर्तिमान् एक पुद्गल है, प्रदेश सहित जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म तथा आकाश ये पांच द्रव्य है, एक संख्या वाले धर्म, अधर्म और आकाश ये तीन द्रव्य है, क्षेत्रवान् एक आकाश द्रव्य है क्रिया सहित जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य हैं, नित्य द्रव्य धर्म, अधर्म, आकाश तथा काल ये चार है, कारण द्रव्य-पुद्गल, धर्म अधर्म, आकाश और काल ये पांच हैं, कर्ता द्रव्य--एक जीव है, सर्वगत (सर्व में व्यापने वाला) द्रव्य-एक आकाश है, और ये छहों द्रव्य प्रवेश रहित है अर्थात् एक द्रव्य में दूसरे द्रव्य का प्रवेश नहीं होता है ॥२७॥
आसव बंधण संवर णिज्जर मोक्खो सपुण्णपावा जे ॥ जीवाजीवविसेसा तेवि समासेण पभणामो ॥२८॥ गाथार्थः-अब जो आसव, बंध, संवर, निर्जरा मोक्ष, पुण्य तथा पाप ये सात जीव, अजीव के भेद रूप पदार्थ है, इनको भी संक्षेप से कहते हैं ॥२८॥
आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विण्णेओ॥
भावासवोजिणुत्तो कम्मासवणं परो होदि ॥२६॥ गाथार्थः-जिस परिणाम से आत्मा के कर्म का आसव होता है उसको श्री जिनेन्द्र द्वारा कहा हुआ भावास्तव जानना चाहिये । और भावासव से भिन्न ज्ञानावरणादि रूपकर्मों का जो आसव है सो द्रव्याराव होता है ॥२६॥
मिच्छत्ताविरदिपमादजोगकोधादओद्य विष्णेया ॥
पण पण पणदस तिय चदु कमसो भेदा दु पुव्वस्स ॥३०॥ गाथार्थ:-अब प्रथम जो भावासव है उसके मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, योग और क्रोध आदि कषाय ये पांच भेद जानने चाहिये । और मिथ्यात्वादि के क्रम से पांच, पांच, पन्द्रह, तीन, और चार भेद समझने चाहिये। अर्थात् मिथ्यात्व के पांचभेद, अविरति के पांच भेद, प्रमाद के पन्द्रह भेद, योग के तीन भेद और क्रोध आदि कषायों के चार भेद जानने चाहिये ॥३०॥ [१४२]