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आशा रूपी बडवानल समता रूपी जल से शांत होता है। '
यहा पर मरीचि कुमार का उदाहरण दिया जाता है, मरीचिकुमार को महावीर भगवान् ही होना था, सो यथा समय होना था, परन्तु इस बात का विचार नही करते है कि मोक्ष कार्य के लिए जो निमित्त चाहिए थे वह मरीचि या अन्य भवो में नहीं मिल सके। फिर उपादान में जागति कैसे होती ? सिह के भव में उपादान को जागृति के लिए निमित्त मिले, उन निमित्तो से उस जीव ने अपना कल्पण किया। सिंह की पर्याय मे हरिण के ऊपर आक्रमण करने को जाना, और उस समय अजितजय व अमितजय मुनियो का आगमन, उनका उपदेश यह सब उस जीव के उपादान की जागति के लिए निमित्ति है, उन निमित्तो के मिलने पर उस जीव का उद्धार हुआ, नही तो इससे पहिले क्यो नही हुआ? इससे ज्ञात होता है कि निमित्तो के मिलने पर ही उपादान की शक्ति जागृत होती है ।
आत्मा को किसने रोक रखा है ? ___आत्मा शुद्ध है, बुद्ध है, निष्कलक है, ज्ञानस्वरूप है, ऐसी स्थिति में उसकी मुक्ति क्यों नही होती है ? उसे किसने यहा पर रोक रखा है ।
यदि एक द्रव्य का असर अन्य द्रव्यो के ऊपर नही होता हो तो, निमित्त कुछ भी बनाता बिगाडता न हो तो, उसे मुक्ति जाने मे क्या आपत्ति है, उसे न कोई रोक सकता है, और न किसी दूसरे द्रव्य से वह रोका ही जा सकता है ।
परन्तु कहा जाता है कि कर्मों ने इस आत्मा को ससार में रोक रक्खा है। कर्मों के निमित्त से आत्मा बवन से बद्ध हो जाता है। ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के निमित्त से आत्मा को कर्मों का आस्रव और आस्रव के बाद बन्ध उदय व सत्वकी व्यवस्था होती है । इसे गोम्मटसार मे नेमिचन्द्र सिद्धान्त चत्रवति ने कहा है। इसी प्रकार मोक्ष मार्ग प्रकाशक में श्री प० टोडरमल जी ने इसका विवेचन करते हुये लिखा है कि
"कर्म और आत्मा का प्रवाह रूप से अनादि सम्बन्ध है । परन्तु नवीन कर्म सयोग होने व पुराने कर्म के वियोग होने को अपेक्षा कर्म और आत्मा का सादि सम्बन्ध है । जहा तक मुक्ति न हो वहा तक तेजस शरीर और कार्भण शरीर का सम्बन्ध साथ-साथ रहता है । तेजस शरीर बिजली का शरीर है, वह कर्मण शरीर के कार्य मे अवश्य सहायक रहता है। निरर्थक नही होता है। तेजस शरीर मे भी नवीन तैजस वर्गणाये आकर मिलती है। पुरानी झड़ती जाती है। जगत मे अनेक प्रकार के पुद्गल स्कध परमाणुओ के मिलने से बनते रहते है। उन्ही को वर्गणा कहते है। उन्ही वर्गणाओ में से एक कर्म वर्गणा है । इन कर्म वर्गणाओं को आत्मा के साथ सयोग कराने में व सयोग को बनाये रखने में कारण योग और कषाय है।"
इन पक्तियो से बिषय कितना स्पष्ट होता है ? तैजस स्वतन्त्र शरीर है, कार्मण स्वतन्त्र शरीर है, कार्मण शरीर के कार्य में वह तैजस शरीर सहायक क्योकर होता है ? तैजस वर्गणाओं से तैजस शरीर बनता है और कामण वर्गणाओ से कार्मण शरीर बनता है। फिर एकमेक में सहायता कैसी? इसी प्रकार औदारिक, वैत्रियक व आहारक शरीर के निर्माण में विघटन मे कर्म
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