________________
काम रूपी हस्ती निरंकुश होकर संयम रूपी वृक्ष को उखाड़ देता है।
नय विवक्षा लेखिका-पूज्या श्री १०५ आयिका सुपार्श्वमती माताजी विश्व के समस्त दर्शन शास्त्र वस्तु तत्व की कसौटी के रूप में प्रमाण को स्वीकार करते है । किन्तु जैन दर्शन इस सम्बन्ध मे एक नयी सूझ देता है । जैन धर्म को मान्यता है कि प्रमाण अकेला वस्तुत्व को परखने के लिए पर्याप्त नही है । वस्तु की यथार्थता का निर्णय प्रमाण और नय के द्वारा ही होता है।
प्रमाण नयरधिगम ॥ अर्थात-प्रमाण और नय के द्वारा पदार्थों की जानकारी होती है केवल प्रमाण या नय से वस्तु का स्वरूप नहीं जाना जाता है । जैनेतर दर्शन नय को स्वीकार नही करते इस कारण एकातवाद के समर्थक बन गये है और जैन दर्शन नय वाद को स्वीकार करता है इसलिए अनेकात वादी है।
किसी भी वस्तु का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिये उसका विश्लेषण करना अनिवार्य है क्योकि विश्लेषण के बिना उसका परिपूर्ण रूप नही जाना जा सकता है । तत्व का विश्लेषण करना और विश्लिष्ट स्वरूप को समझना नय को उपयोगिता है। नय वाद के द्वारा परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले विचारो के अविरोध का मूल खोजा जाता है और उनका समन्वय किया जाता है
नय विचारो को मीमासा है । वह एक ओर विचारो के परिणाम और कारण का अन्वेषण करते है और दूसरी ओर परस्पर विरोधी विचारो में अविरोध का बीज खोज कर समन्वय स्थापित करते है।
___ अनेक धर्मात्मक वस्तु के परस्पर विरोधी नित्य अनित्य, सत असत, एक अनेक आदि धर्मों का समन्वय करके सिद्धि करना नय का कार्य है । जगत के विचारो के आदान प्रदान का साधन नय है।
नय का लक्षण अनन्त धर्मात्मक वस्तु को अखड रूप से जानने वाला ज्ञान प्रमाण कहलाता है, और प्रमाण के द्वारा जानी हुई वस्तु के एक अश जानने वाला ज्ञान नय कहलाता है । प्रमाण सर्वा श ग्राही है और नय एक अश का ग्राहक है।
"सधर्मणैव साध्यस्य सधाा दविरोधतः । स्याद्वाद प्रविभक्तार्थ विशेष व्यञ्जको नय. ॥
-"आप्त मीमासा" स्याद्वाद अर्थात-श्रुत प्रमाण के द्वारा ग्रहीत अर्थ के विशेष धर्मो का प्रथक-प्रथक कथन करना नय है। नीयतेऽनेन इति नय. जिसके द्वारा जाना जाय उसे नय कहते है।
___ "नीयते गम्यते येन श्रुता शीशों नयो हि सः" श्रुत के द्वारा जाने हुये पदार्थों का एक अश जिससे जाना जाता है वह नय है।