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संयमी जनों की संगति से आशा पिशाचिनी नष्ट हो जाती है।
द्रव्य नैगम के दो भेद है-१. शुद्ध द्रव्य नैगम २. अशुद्ध द्रव्य नैगम । पर्याय नेगम के तीन भेद है -१. अर्थ पर्याय नेगम २. व्यजन पर्याय नैगम ३. अयं व्यजन पर्याय नैगम । अर्थव्यजन पर्याय नैगम के तीन भेद हैं- १. ज्ञानपर्याय नैगम २. ज्ञयार्थ पर्याय नगम ३. ज्ञान ज्ञेयार्थ पर्याय नैगम । व्यजनपर्याय नैगम के ६ भेद है (१) शब्द व्यंजन पर्याय नैगम, (२)समभिरूढ़ व्यजनपर्याय नयम, (३) एवभूत व्यंजन पर्याय नैगम (४) शब्द समभिरूढ़ व्यजन पर्याय नैगम, (५) शब्द एवभूत व्यजन पर्याय नैगम, (६) समभिरूढ एवभूत व्यजन पर्याय नैगम । अर्थ व्यंजन पर्याय नैगम के तीन भेद है (१) ऋजुसूत्र शब्द अर्य व्यजन पर्याय नैगम (२) ऋण सूत्र समभिरूढ अर्थ व्यंजन पर्याय नैगम (३) ऋजुसूत्र एवभूत अर्थ व्यजच पर्याय नैगन । द्रव्य पर्याय नैगम के आठ भेद है- (१) शुद्धद्र-य ऋजुसूत्र-द्रव्यपर्याय नैगम (२) शराब पर्यायनैगम, (३) शुद्ध द्रव्य समभिरूढ द्रव्य पर्याय नैगम (४) शुद्ध द्रव्य एवंभूत द्रव्य पर्याय नेगम (५) अशुद्ध द्रव्य ऋजुसूत्र द्रव्य पर्याय नेगम (६) अशुद्ध द्रव्य शब्द पर्याय नैगम (७) अशुद्ध द्रव्य समभिरूढ द्रव्य पर्याय नैगम (८) अशुद्ध द्रव्य एवभूत द्रव्य पर्याय नैगम ।
नैगम नय के उक्त भेदो को गिनाकर विद्यानन्द स्वामी ने लिखा है कि लोक और शास्त्र के अविरोध पूर्वक उदाहरण घटा लेना चाहिये किन्तु इनके उदाहरणादि किसी अन्य ग्रन्थ में मेरे देखने में नही आये है।
जय धवल में लिखा है-तत्र शुद्ध द्रव्यार्थिकः पर्याय कलक रहितः बहु भेद संग्रहः । अशुद्ध द्रव्याथिकः पर्याय कलकाकित द्रव्य विषय. । यदस्ति न तद्वयमतिलभ्य वर्तते इति नकगमी नैगमः शब्द शील कर्म कार्य कारणाधाराधेय सहत्तार मानमेयोन्मेय भूत भविष्यद वर्त मानादिक माश्रित्य स्थितोपचार विषयः।
पर्याय कलक से रहित शुद्ध द्रव्याथिक के बहुत से भेदों को ग्रहण करने वाला सग्रह नय है। अशुद्ध द्रव्यार्थिक पर्याय कलंक से युक्त द्रव्य का विषय करने वाला व्यवहार नय है। अस्ति और नास्ति दोनो का उलघन न कर अथवा एक द्रव्य वा एक पर्याय का विषय न करके गौणता और प्रधानता से दोनों का विषय करने वाला नैगम नय है । शब्द शील कर्म कार्य कारण आधार-आधेय मान-मेय उन्मेय भूत भविष्यत वर्तमानादि समस्त भेदों का विषय करने वाला नैगम नय है ।
संग्रह नय विधि व्यतिरिक्त प्रतिवेषानुप लंभा द्विधि मात्र मेव तत्व मित्यव्यवसाय समस्तस्यग्रहणा संग्रहः ।
विधि (सत्ता) से व्यतिरिक (भिन्न) असत्ता नही है इसलिये विधि मात्र ही तत्त्व है। इस प्रकार समस्त सत्ता को ग्रहण करने वाले नय को सग्रह नय कहते है।