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जिसके हृदय में सत्पुरुष की वाणी ने प्रवेश नहीं किया वह अंधा है।
इस नैगम नय के अनेक भेद बतलाये है । नेगम नय के मूल भेद तीन है पर्याय नैगम, द्रव्य नैगम, और द्रव्य पर्याय नैगम । पर्याय नैगम के तीन भेद है। द्रव्य नैगम के दो भेद है। और द्रव्य पर्याय-नगम के चार भेद है। इस प्रकार नैगम नय के नो भेद है।
पर्याय नैगम के तीन भेद हैभर्थ पर्याय नैगम, व्यंजन पर्याय नंगम, अर्थ- व्यजन पर्याय नैगम ।
अर्थ पर्याय नैगम किसी वस्तु में दो अर्थ पर्यायो को गोण और मुख्यरूप से जानने के लिये ज्ञाता का जो अभिप्राय होता है वह अर्थ पर्याय नंगम है। जैसे सशरीर जीवका मुख मवेदन प्रतिक्षण नाश को प्राप्त होता है यहा प्रतिक्षण उत्पाद- व्ययरूप अर्थपर्याय तो विशेपरूप होने से गौण है और सवेदन रूप अर्थपर्याय विशेष्य होने से मुख्य है । विशेप और विशेष्य कथञ्चित् एक है कञ्चित् अनेक है जो सुख और ज्ञान को सर्वथा परस्पर मे भिन्न मानते है वह नेगमाभास है ।
व्यंजनपर्याय नगम एक वस्तु मे गौणता और मुख्यता से दो व्यजन पर्यायो को जानने वाला व्यजन पर्याय नंगम है। जैसे आत्मा मे सत् चैतन्य है यहा मत्व को गीण रूप में और चैतन्य को मुख्यरूप से ग्रहण है तथा सत् और चतन्य को कथचित् भिन्न कथचित् अभिन्न मानता है। सत्ता और चैतन्य को परस्पर मे आत्मा से सनथा भिन्न मानने का अभिप्राय व्यजन पर्याय नैगमाभास है।
अर्थ व्यञ्जनपर्याय नगम अर्थ पर्याय और व्यजन पर्याय को गौण और मुख्य रूप में जानने का अभिप्राय अर्थ व्यंजन पर्याय नैगम है । जैसे धर्मात्मा पुरुप का मुखी जीवन है । मुख और जीवन को सर्वथा भिन्न मानने का अभिप्राय अर्थ व्यजन पर्याय नैगमाभास है। गद्ध द्रव्य नैगम नय, अणद्ध द्रव्य नैगम नय । सम्पूर्ण वस्तु सद् द्रव्यरूप है इस प्रकार के अभिप्राय को शुद्ध द्रव्य नैगम नय कहते है । इसमे गुण और पर्याय का वर्णन नहीं है । सत् और द्रव्य का गुण गुणी को सर्वथा प्रथक् मानना शुद्ध द्रव्य नैगमाभास है।
___ द्रव्य पर्यायी है गुणी है अर्थात् द्रव्य गुण और पर्यायवाला है ऐसा कयन करने वाला है कथंचित् गुण गुणी में पर्याय पर्यायी में भेद मानना अशुद्ध द्रव्य नैगम नय का विपय है । और गुण - गुणी में सर्वथा भेद मानना नैगम नयाभास है। द्रव्य पर्याय नैगम के शुद्ध द्रव्यार्थ पर्याय नैगम नय अशुद्ध द्रव्यार्थ पर्याय नैगम नय शुद्ध द्रव्य व्यजन पर्याय नेगम नय अशुद्ध द्रव्य व्यजन पर्याय नैगमनय यह चार भेद है।
शुद्ध द्रव्य-अर्थ पर्याय नैगमनय इस ससार में मुख सत्स्वरूप है तथा क्षणिक है यहा सत् द्रव्य है । और सुख अर्थ पर्याय है। इसमे सत् द्रव्य विशेष है रूप शुद्धद्रव्य तो गौण है और विशेष्य रूपअर्थ पर्याय सुख मुख्य है द्रव्य और पर्याय दोनो को गौण मुख रूप से ग्रहण करने वाला शुद्ध द्रव्य अर्थपर्याय नैगम नय है जो मुख पर्याय से सत् को सर्वथा भिन्न भिन्न मानते हैं वह नैगमाभास है।