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गुरुओ के सदुपदेश से सुमति का प्रादुर्भाव होता है।
है जहां कालकृत भेद होता है वह पर्यायायिक नय है । ऋजुसूत्र शब्द समभिरूढ और एवभूत यह चार पर्यायाथिक नय है। क्योकि इनमें पर्याय को मुख्यता है।
पर्यायाथिक नय दो प्रकार का है- अर्थ नय और व्यजन नय। नैगम संग्रह व्यवहार और ऋजुसूत्र नय अर्थ नय है तथा शब्द समभिरूढ और एवभूत यह व्यजन शब्द नय है। ___ उक्त सात नयों में पूर्ण पूर्व का नय वह विषय वाला है क्योंकि वह कारण रूप है और उत्तर उत्तर का नय अल्प विपय वाला है, क्योंकि वह पूर्व नय का कार्यरूप है । जैसे नैगम और सग्रह नयों में से सग्रह नये वह विपय वाला नहीं है, क्योकि वह नैगम से उत्तर है बल्कि संग्रह से पूर्व होने के कारण नैगमनय ही वह विपय वाला है। सग्रह नय केवल सन्मात्र को ग्रहण करता है किन्तु नैगम नय सत् और असत् दोनों का ग्राहक है, क्योकि जैसी सद्प वस्तु में सकल्प किया जाता है तथा सग्रह से व्यवहार नय अल्प विपय वाला है।
क्योकि सग्रहनय तो समस्त सत्समूह का संग्राहक है और व्यवहारनय सद्विशेष का ही ग्राहक है । व्यवहारनय से ऋजुसूत्रनय अल्प विषय वाला है। क्योकि व्यवहारनय त्रिकालवर्ती अर्थ को ग्रहण करता है और ऋजुसूत्र नय वर्तमान पर्याय को ग्रहण करता है। ऋजुसूत्र से शब्दनय अल्प विषय वाला है क्योंकि ऋजुसूत्र कालादि के भेद से अर्य को भेदरूप नही मानता, किन्तु शब्दनय कालादि के भेद से अर्थ भेद मानता है। शब्दनय से समभिरूढ अल्य विषय वाला है, क्योकि शब्दनय तो पर्याय भेद होने पर भी अभिन्न अर्थ को स्वीकार करता है किन्तु समभिरूढ पर्याय भेद से अर्य को भेदरूप स्वीकार करता है समभिरूढ नय से एवं भूतनय अल्प विषय वाला है, क्यों कि समभिरूढनय क्रिया भेद से अर्थ को भेदरूप स्वीकार करता है।
नयों के वर्णन दो प्रकार से है एक आगम भापा की अपेक्षा और एक अध्यात्म भापा की अपेक्षा । आगम भाषा की अपेक्षा भी दो भेद है द्रव्याथिक और पर्यायार्थिक जिनका वर्णन ऊपर कर दिया है यहाँ से आध्यात्मिक की अपेक्षा वर्णन किया जाता है यद्यपि आगम भाषा का वर्णन और आध्यात्मिक भाषा का वर्णन भिन्न-भिन्न नही है केवल कथन मे अन्तर है।
पिच्छय ववहारनया मूलमभेद्या पयाण सन्वाएं।
पिच्छय साहण हेऊ दन्वय पन्जित्थया मुण्ह ॥ सम्पूर्ण नयों के निश्चय नय और व्यवहारनय यह दो मूल भेद है। निश्चय का हेतु द्रव्यार्थिक नय है और साधन (व्यवहार) का हेतु पर्यायाथिक नय है। क्योंकि निश्चयनय द्रव्य में स्थित है और व्यवहार नय पर्याय में स्थित है। श्री अमृतचन्द्र आचार्य ने भी समय सार गाथा ५६ को टीका मे
"व्यवहारनयः किल पर्यायाश्रित्वात्" निश्चय नयस्तु द्रव्याधित्वात् । व्यवहार नय पर्याय के आश्रय है और निश्चय नय द्रव्य के आश्रय है अर्थात निश्चय नय का विषय द्रव्य है और व्यवहारनय का विषय पर्याय है :
व्यवहारो य पियप्पो भेद तह पज्जओत्ति एयढो गो० जी० व्यवहारेण विकल्पेन भेदेन पर्यायेण"
-समयसार गाथा-१२ [१२]