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॥श्री॥
श्री १०८ परम पूज्य स्व० चन्द्रसागर जी महाराज का
॥ तेजोमय तपस्वी जीवन ॥
- श्री मिश्रीलाल शाह जैन शास्त्री, श्री चंद्रसागर स्मारक लाडनूं (राजस्थान) -
ज्यो ही यह जानने मे आया कि उपर्युक्त आचार्य कल्प सघ नेता श्री चन्द्रसागर जी महाराज के सम्बन्ध मे स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है, मानस परम आलाद को तरंगो मे तरगति हो उठा। सुन्दर सामग्री से सुसज्जित होकर इसके प्रकाशन में वर्धमान उत्साह होने का एक कारण बना, वह यह कि स्व० १०८ आचार्य श्री महावीर कीर्तिजी मुनिराज के सघ के पास श्री १०८ चन्द्रसागरजी महाराज के स्वय के हाथ की लिखी हुई विपुल पठनीय सामग्री से परिपूर्ण महान पुस्तक थी। उनने लाडनू निवासी सप्तम श्रावक श्री शिवकरणजी जैन अग्रवाल को हस्तगत कर दो। इनने फिर १०५ विदुषीरत्न श्री सुपार्श्वमती जी आर्यिका जी (श्री १०५ इन्दुमती जो सघस्थ) जिनको कि गुरु महाराज पर परम श्रद्धा, भक्ति, और उनके पुनीत गुणों के सस्मरण से परम प्रभावशील रहती आई है-उस पुस्तक को सेवार्पित किया । आपने' ही इस पुस्तक के सपादन मे परिपूर्ण योगदान देकर जन हित की भावना से इसके प्रकाशित कराने की योजना को कार्यान्वित बना दिया। इसलिये मुझे भी-जिनकी कि चरण छाया में दीर्घकाल तक रहकर ओजस्वी अमृतोपम वाणो के पान करने का सुखद सयोग मिला है, उनके प्रसाद से प्राप्त होने वाले अनुभवो को लेखनी वद्ध करने का उत्साह जागृत हुआ है।
आपने माघ बदी १३ वि० स० १९४० में अपने जन्म द्वारा नादगाव (दक्षिण) के धरातल को पवित्र बनाया था। पितु श्री नथमलजी माता सोता पहाडिया व गृह परिवार के तब हर्ष का पारावार न था। पुत्र खुशालचन्दजो ने तब अपने पूर्व सस्कार व माता पिता के भव्य सस्कारो से शीघ्र ही शास्त्र बोध पाया। लौकिक पारलोकिक शिक्षण मे पारगत हो गये । तारुण्य के प्रवेश मे ही आपको देश भक्ति का उत्साह जाग्रत हो गया । साधु सन्तो के सम्पर्क से वैराग्य से प्रोत प्रोत होकर साधना के क्षेत्र मे रहते रहते मगसर सुदी १५ वि० स० १९८६ सोनागिर सिद्धक्षेत्र मे स्व. आचार्य गुरु शातिसागर जी महाराज द्वारा मुनिदीक्षा से दीक्षित होकर सर्वत्र धरातल पर विहार करते हये अपने विशिष्ट ध्यान, अध्ययन तपस्विता से बड़े प्रभावशाली विशिष्ट व्यास्याता एव परम वाग्मी बन गये। मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविकाओ से आपका सघ दीप्तिमान था। सघ सचालन को आपमे बड़ी कुशलता थी। विहरित क्षेत्र में आपके
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