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संयम को आराधना शक्ति ज्योति और आनन्द को प्रदान करती है।
विज्ञान बल से अनेको श्रावक श्राविकाओ ने व्रत नियम लिये । अजैन भी आपके भव्योपदेश से प्रभावित होकर रात्रि भोजन मांस मदिरा आदि अभक्ष्य भक्षण के संसर्ग से छट गये।
आप में प्रकृति दत्त एक गुण था, वह यह कि आप बड़े निर्भीक व सिंह वृत्ति के धारक थे। सेठ साहूकार धनी मानी आदि की परवाह न कर खरी कहने में कभी संकोच न करते थे। इससे शक्तिवन्त श्रीमन्त वर्ग आप से प्रतिगामी होकर भी कही पेश आते थे पर अन्त में उन्हें आपकी सत्यता, वास्तविकता अलंध्य तर्करणा शक्ति और आर्ष मार्ग साधक तत्त्वबोध के आगे सभी वर्ग को आपके आगे झुकना पड़ता था। बड़े बड़े महारथी शास्त्री विद्वान आपकी विद्वता प्रतिभाशालिता के आगे नतमस्तक हो जाते थे। आपके भाषण में सहस्रों व्यक्ति जमा होते थे। बड़े बड़े सरकारी आफिसर्स भी आपके वस्तु प्ररूपण शैली से चमत्कृत होते थे। इन्दौर चातुर्मास में बहुत बड़ा विरोधी वातावरण खड़ा हुआ था पर वहां भी आप तप्तायमान स्वर्ण की भांति दीप्तिमान सिद्ध हुए, और आपकी तपस्विता के आगे सब शांत हो गये, उस समय जो वहां धर्म प्रभावना व जय जयकार हुआ वह अवर्णनीय है। एतावता आप परीषह जयो उपसर्ग जयी जितेद्रिय सिद्ध हुए।
आपके निमित्त से आपकी स्मृति में सच्छावकों ने प्रभावित होकर यहां 'श्री चन्द्र सागर स्मारक' निर्माण कराया। उसमें साधुत्रय की मूर्ति विराजमान होने से (श्री शाति, वीर, चद्र, मुनित्रय) नित्य ही कर्तव्य की संस्मृति होती रहतो है । ऐसा ही स्मारक इन्दौर मे भी भागम सेवको जनो द्वारा निर्मापित हुआ है।
इन्दौर से विहार कर आप सिद्धक्षेत्र बड़वानी चले गये। वहां फागुन सु०१५ सं० २००१ में शुभ सल्लेखना पूर्वक स्वर्गीय हो गये। आपके प्रति मैं भक्ति से अवनत होकर श्रद्धांजलि समर्पित करता हूं और आप ही के पथ का अनुगामी होने की भावना करता हूं।