________________
संसार के उत्तम भोगों का कारण पुण्य है।
पधारी थी। उन्होंने बताया था कि दीक्षा के पूर्व वै सोना बाई के नाम से प्रसिद्ध थी। विधवा हो जाने पर भी उनके शरीर पर सोने के बहुत आभूषण मोजूद थे। चन्द्र सागर महाराज ने कहा "सोना बाई ! क्या दूसरा पति कर लिया? सदाचारिणी विधवा का वेष तो ऐसा नहीं रहता है।"
यह कठोर बात सोना बाई के हृदय में प्रवेश कर गई। उन्होंने तुरन्त ही सव आभूषण दूर कर दिये । उनको गुरु की कड़ी वाणी ने कल्याण के मार्ग में लगा दिया। इस प्रकार की कड़वी उपदेश रूपी दवा देकर चन्द्र सागर महाराज ने हजारों भव्यात्माओं को सन्मार्ग पर लगाया था। आचार्य शान्ति सागर महाराज कहते थे "कड़ी भाषा बोलना चन्द्र सागर की पिण्ड प्रकृति थी। चन्द्र सागर महाराज ने स्वतन्त्र रूप से बड़ी योग्यता पूर्वक अपने संघ का संचालन किया । वे आचार्य होते हुए भी अपनी वीतरागता को संघ का संचालन करते समय सदा सजग रखते थे।
दर्शन
जब चन्द्र सागर महाराज गजपंथा पधारे तव मुझे उनके निकर संपर्क में जाने का सुयोग मिला, मैंने उनका उपदेश सुना मैंने उनकी वाणी में ओज और प्रभावकता के दर्शन किये । वे वर्तमान युग के भ्रष्ट आचार तथा विचार की भय विमुक्त हो कड़ी समालोचना किया करते थे।
गजपंथा में उस समय विद्यमान मुनि भक्त भाई वंशीलाल जी पाटनी ने उनके बारे में एक विचित्र वात सुनाई थी "कि महाराज गजपंथा पहाड पर अपना कमंडलु नही ले जाते थे और उसे नीचे ही तलहटी में देव के भरोसे छोड़ देते थे। वे इस बात की तनिक भी चिन्ता नहीं करते थे कि इसे कोई उठाकर ले जायेगा। वे कहते थे हमारी कार्मण वर्गणायें चारो ओर फैली है । वे इसकी रक्षा करेंगी। वे अत्यन्त निर्मोही और निर्भीक प्रकृति के थे। पायदान तथा पूजा को गृहस्थ का मुख्य कर्तव्यमान उपदेश देते थे।"
वे धनवानों को खुश करने के लिये उपदेश नही देते थे वे कहा करते थे जैसे-जैसे लोगों के पास पैसा बढ़ता है वैसे-वैसे उनके भीतर दुर्बद्धि भी वढती है। उनकी वाणी कटु होते हुये भी कल्याण की भावना युक्त रहती थी। माता ही बच्चों को सुधारने के लिये कड़ी बोली कहती है दूसरे लोग मीठी बात करते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि में हित नहीं है। महाराज ये मारवाड़ी की कहावत कहते थे, "कड़वी बोली मायड़ी, मीठा बोल्या लोक" शुद्ध वंश-परम्परा
एक दिन मैंने गजपंथा पहाड को जाते समय महाराज से सामाजिक शांति तथा संघ को कीर्ति संवर्धन के बारे में चर्चा की तब उन्होने मुझसे बड़े प्रेम पूर्वक कहा था, "पंडित जी आप को हमारी और हमारे संघ की कीर्ति रक्षा की बात क्यों सूझती है ? इसका कारण यह है कि