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श्री १०८ स्वर्गीय मुनि श्री चन्द्रसागर स्तुतिः स्वर्गीय महा विद्वान पं० इन्द्रलाल जी जैन शास्त्री, वोरडी का रास्ता जयपुर जिन्होने प० मिश्रीलाल जी शाह को अधिकतम प्रेरणा पाकर वि० सं० २०२१ में यह स्तुति रच कर भी चन्द्रसागर स्मारक लाडनूं को सेवापित फो।
अनुष्टुप् छंद २० " इलामूल मिलन्मौलि, श्चन्द्रसागर सन्मुनिम् ।
नं नमीमि महाभक्त्या, संसार क्लेश हानये ॥१॥ शताब्धि नव के के उदे, वैक्रमे जन्म लब्धवान् ।
माघ कृष्ण त्रयोदश्यां नांदगांव पुरे वरे ॥२॥ माता सीता सती यस्य, पिता नथमलो बुधः ।
खण्डेलवाल मार्तण्ड: पहाड्या कुलदीपकः ॥३॥ संलेभे जन्म ताभ्यां यो, वंश संमोदकारकम् ।
द्वितीया चंद्रवद्वृद्धि, प्राप चन्द्र समद्य तिः ॥४॥ नाम्ना खुशाल-चन्द्रोऽयं, प्रथितोऽभून्महीतले ।
पठित्वा बहु शास्त्राणि, महाविद्वान विभूच्छिशु. ॥५॥ पाश्चात्य शासन द्रोही, देशभक्ति युतो युवा ।
स्वातंत्र्यार्थ स्वदेशस्य, यत्नं चक्र त्रिधा मुदा ॥६॥ न तत्र पूर्णता दृष्टा, स्वातंत्र्यस्य स्वतो विना ।
वैराग्यमादधे चित्ते, ह्यात्मस्वातंत्र्य हेतवे ॥७॥ ब्रह्मचर्य पदं लेभे, गुरोः श्री शान्तिसागरात् ।
धर्म सेवां प्रकुर्वाणः तत्पश्चात् क्षुल्लकादिकम् ॥८॥ षडष्ट नव के केन्दे, वैक्रमेन्दे विदांवरः।
सुवर्णगिरि सिद्धाख्ये, मुनिदीक्षां समाहदे ॥६॥
* पृथ्वी के मूल में लगा है मस्तक जिसका ऐसा मै 'इन्द्रलाल'
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