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इन्द्रियरूपी राक्षसों से व्याप्त कामरूपी सिंह से चवित संसार कानन में मोहान्य प्राणी भटक रहा है।
एक दिन कपिल ब्राह्मण ने दोनो बच्चो को कन्धे पर विठाया और उसकी पत्नी ने हाथ में फूलों का पिटारा लिया तथा शीघ्र हो राम के दर्शन करने के लिये निकले ।
मार्ग में अनेक भयंकर सर्प, सिंह आदि जन्तु उसको बाधा देने लगे, परन्तु वह मन हो मन जिनेन्द्र भगवान का स्त्रोत पढ रहा था, इसलिये समस्त विघ्न दूर हो गये। भयंकर संसार रूप दावानल को शात करने वाले जिनेन्द्र स्त्रोत से क्ष द्र कार्य, विघ्न नष्ट हो जाय तो उसमें कौन सी आश्चर्य की बात है।
इसको जिन धर्म में दृढ विश्वासी देखकर वहां के रक्षक द्वारपालों ने भी उसको राम के दर्शन करने को जाने के लिए आज्ञा देदी? तदन्तर ब्राह्मण ने राम के महल मे प्रवेश किया, वहां वह दूर से ही लक्ष्मण को देखकर आकुलता को प्राप्त हुआ। उसके शरीर मे कपकंपो छटने लगी। वह विचार करने लगा कि नील कमल के समान प्रभाववाला यह वही पुरुष है, जिसने उस समय मुझ मूर्ख को नाना प्रकार को मार से दुखी किया था। उसको बोलती वन्द हो गई । वह मन ही मन अपनी जिह्वा से कहने लगा है महादुष्टे ! हे पापे ! उस समय तो तूने कानो के लिए अत्यन्त दुःखदायी वचन कहे, अब चुप क्यो हो, बाहर निकल । वह मन ही मन विचार करने लगा कि क्या करूं ? कहा जाऊँ ? किस विल मे घुस जाऊ? आज मुझ शरणहीन का यहां कौन शरण होगा? यदि मुझे मालूम होता कि वह यहां ठहरा है तो मैं उत्तर दिशा को लापकर देश त्याग ही कर देता । इस प्रकार उद्वेग का प्राप्त हुआ वह ब्राह्मण ब्राह्मणी को छोड़ भागने के लिए तैयार हुआ ही था कि लक्ष्मण ने उसे देख लिया। हंसकर लक्ष्मण ने कहा कि यह ब्राह्मण कहा से आया है । जान पड़ता है कि इसका पोषण वन मे हो हुआ है । यह इस तरह आकुलता को क्यो प्राप्त हुआ है। सान्त्वना देकर उस ब्राह्मण को शीघ्र लाओ, हम उसकी चेष्टा को देखेंगे और सुनेगे कि यह क्या कहता है । डरो मत, लौटो इस प्रकार कहने पर वह सात्वना को प्राप्त कर लड़खड़ाते पैरो से वापिस लौटा।
श्वेत वस्त्र को धारण करने वाला वह ब्राह्मण पास जाकर निर्भय हो राम लक्ष्मण के सम्मुख गया तथा अजुली मे पुष्प रखकर उनके सामने खड़ा हो 'स्वस्ति' शब्द का उच्चारण करने लगा, जो प्राप्त हुये आसन पर बैठा था और पास ही जिसकी स्त्री बैठी थी ऐसा वह ब्राह्मण स्ववन करने में समर्थ ऋचाओ के द्वारा राम लक्ष्मण को स्तुति करने लगा । स्तुति के बाद राम ने कहा कि हे बाह्मण उस समय हम लोगो का वैसा तिरस्कार कर अब इस समय भाकर पूजा क्यों कर रहे हो सो तो बताओ । ब्राह्मण ने कहा-हे देव ! मैने नही जाना था कि आप प्रच्छन्न महेश्वर हो इसलिये भस्म से आच्छादित अग्नि के समान मोहवश मुझ से आपका अनादर हो गया। हे जगन्नाथ, चराचर विश्व को यही रीति है कि शीत ऋतु में सूर्य के समान धनवान की ही सदा पूजा होती है । यद्यपि इस समय मै जानता हूं कि आप वही है, भन्य नही फिर भी आपकी पूजा हो रही है । सो हे पद्म ! यहा यथार्थ मे धन की पूजा हो रही है आपकी नही । हे देव! लोग निरन्तर धनवान की ही पूजा करते हैं और जिसके साथ