________________
पर सुरा सुर के द्वारा अनिवार्य काल सिंह से पाने याला कोई नहीं ।
तुमने धार्मिक कुल में जन्म प्राप्त किया है। तुम्हारे पिता सिंघई कुवर सेन जी को हम जानने है । वे महान प्रभावशाली और परम धार्मिक जैन नेता है । जीवन में उच्चतुल और सज्जातित्य के कारण मानव की प्रवृत्ति अच्छे कामो की ओर होती है। शुद्ध वंश परम्परा का महत्व है। जैसे सच्चा क्षत्रिय युद्ध भूमि से विमुख नही होता है उसी प्रकार शुद्ध वश परम्परा वाला व्यक्ति कर्मों के क्षय रूप धर्म युद्ध से विमुख नही होता है यह कह कर उन्होने मुझे अनेक उपयोगो बातें कहते हुए अपना आशीर्वाद दिया था।
सत्य प्रेम
उनकी खास बात थी कि समझ में आ जाने पर वे अपनी भूल को आगम के प्रकाश में सुधारने में संकोच नही करते थे। वे कहते थे, जिनके मन में पाए का निवास है वे ही हठ और दुराग्रह का त्याग नही करते, "हठ ग्राहि रहे जिनके पोते पाप" ऐसा वे कहा करते थे। वे सत्य प्रेमी थे।
नर सिंह
महान आत्मा में जो गुण आवश्यक है, वे सब उनमे विद्यमान थे। वे सिंह के समान निर्भीक स्वभाव थे । जब वे जयपुर नगर के निकट खानिया को धर्मशाला मे थे और जगल में पहाडी पर ध्यान हेतु चले जाया करते थे तब कभी-कभी वहां शेर की तथा अन्य जगली जानवरो की गर्जना सुनाई पडती थी किन्तु ये धीर, वीर साधु उस जगह पर शात भाव से आत्म ध्यान में लीन रहा करते थे। कठिनाइयो के आगे सिर झुकाना और न्याय मार्ग को छोड देना उनका स्वभाव नहीं था। विपत्तियों और कठिनाइयों के बीच वे-सात्मवली, वीर मनम्बी सयमी-रत्न धर्म का आश्रय ले आगे बढ़ते जाते थे । यथार्थ मे वे बड़े तेजस्वी साधुराज हो गये। घे नर-सिह समान थे वे ज्ञान-ध्यान-तपोरक्त महर्षि थे।
सच्चे साधु रत्नकरण्ड श्रावकाचार मे सच्चे गुरु का लक्षण इस प्रकार कहा है
विषयाशा-वशातीतो निरारंभोपरिग्रहः ।
ज्ञान-ध्यान-तपोरक्तस्तपस्वी स प्रशस्यते ।। जो विषय भोगो की आशा से रहित है, जो आरभ और परिग्रह से विमुख है, तया जो ज्ञान, ध्यान और तप मे अनुरक्त है, वह तपस्वी स्तुति-योग्य हैं। चद्र सागर महाराज में ममत भद्र स्वामी कथित उपरोक्त लक्षण पूर्णतया पाया जाता था। यथार्थ में वे बडे निर्मोही, निस्पृही, परम वीतराग तपस्वी थे। उन्होने खूब स्व तथा पर का कल्याण किया। विरोधी भी, पश्चात उनके चरणों का भक्त बनता था ऐसा था उनका अपूर्व व्यक्तित्व ।