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अन्धा मानव
दैवाश्रित या भाग्य भरोसे लोग दैवके भयसे अपनी कर्मशक्तिको तृणके स्पन्दनतकसे शंकालु कछुए के समान सकोडकर बैठ जाते है और कोई भी नया काम नहीं छेडते ।।
( कर्तव्यसे भागनेका दुष्परिणाम ) । कार्यबाह्यो न पोषयत्याश्रितान् ।। १३० ।। कर्तव्यसे भागते फिरनेवाला आश्रितोंका भरणपोषण नहीं करपाता।
विवरण- जो व्यक्ति स्वभावसे कर्तव्यहीन होता है वह आश्रितोंके प्रति भी अपने कर्तव्य की उपेक्षा करबैठता है। जबतक मनुष्य शिक्षा, रक्षा, शिल्प, वाणिज्य, कृषि मादि समाजोपयोगी कार्यमें अपने दिनका सर्वोत्तम समय व्यय करना अपना कठोर भत्याज्य कर्तव्य नहीं बनालेता, तबतक वह आश्रितपालन नहीं कर सकता और परिवारपर अपना प्रभुत्व भी नहीं रख सकता। ऐसा मनुष्य माधुनिक भाषामें “मावारा" कहाता है।
( अन्धा मानव ) यः कार्यं न पश्यति सोऽन्धः ॥ १३१ ।। जिसे अपनी विवेककी आंखसे अपना सामयिक कर्तव्य पहचानना नहीं आता, वह आंखोंके रहते हुए भी अन्धा है।
विवरण- योग्य कार्य न पहचानना ही अंधापन है। अविश्रमो लोकतन्त्राधिकार: '- शासनसंबन्धी कर्तव्य करनेवालोंके पास प्रत्येक क्षण अनेकानेक कर्तव्यों की समस्यायें उपस्थित होती रहती हैं। इतनेपर भी यदि किसीको करने योग्य कार्य नहीं दीखता तो उसे अन्धा ही समझना चाहिये । उसका अनिष्ट होना अनिवार्य है।
अथवा- जो राजा राज्यसंबन्धी कामोंके विषयमें अपना आनुभविक प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं रखता, जो स्वयं अपनी मांखोंसे अपना राजकाज नहीं