Book Title: Chanakya Sutrani
Author(s): Ramavatar Vidyabhaskar
Publisher: Swadhyaya Mandal Pardi

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Page 656
________________ अनार्यवादोंकी आलोचना सुखाधिकारमें चला जाना है । शान्तिको जीवनका लक्ष्य बनाने को हो संप. त्तिका समविभाजन भी कहा जाता या कहा जा सकता है। भाधुनिक भारतीय प्रजातंत्र भी उन भोगवादी सिद्धान्तोंपर भाधारित तथा संगठित हुमा है जो (सिद्धान्त ) लोगोंको राज्यसंस्थाको अप्रजा. तांत्रिक ढंगसे हथियानेकी छट देते हैं। यही कारण हआ है कि यह माधु. निक भारतीय प्रजातंत्र राज्यसंस्थाको अप्रजातांत्रिक ढंगसे हथियानेवाले संगठन ( पार्टी ) का भोगक्षेत्र बन गया है। इस संगठन के नेतामोका द्देश्य देशका नैतिक उत्कर्ष माधना या देशके मनको स्वाभिमानी बनाना नहीं है किन्तु देशको राज्यसंस्थाका दास बनाये रखने के लिये उसके सामने भोगसंग्रहकी वे खोखली योजनायें बना बनाकर रखते चले जाना है जो केन्द्रसे परिचालित होकर इन लोगों की क्रमिक भौतिक महत्वाकांक्षाओं में इंधन जुटाने के लिये जनकल्याणके मनोहर नामसे अपनायी गई हैं। __ यद्यपि देशकी जनता ही समस्त संपत्तियोंकी उत्पादक है तो भी वह अपने भोगी स्वार्थी शासकों को कमा कमाकर खिलानेवाली मजदूर तथा उन्हींको उच्छिष्ट बूंदों को चाटने वाली भिखारिन बनी हुई है । वह इनलोगों के नन्दनकानन के भी कान काटनेवाले कोठी, बंगलों तथा राजप्रामादोंको ही अपने जीवनका लक्ष्य मान बैठी है । देशकी प्रभुतालोभी पार्टि. यों की कृपा भाजके भारतवामी के सामने कोई भी मानवोचित आदर्श नहीं छोडा है । इन लोगोंके भोगपरायण कुदृष्टान्तोंने देशके आध्यात्मिक भाद को देशके सामने मानेसे केवल रोका ही नहीं है प्रत्युत उसपर घातक प्रहार भी किये हैं । जनता इनके भोगनेसे बचीखुची जूठनको संग्रह कर. नेमें पारस्परिक कलहों, इर्ष्याओं तथा प्रतिहिंसामों में डूब गई है और समाजका कल्याण कर सकनेवालो नैतिकताकी जंजीरोंको निर्दयता के साथ तोर फेंकने में दिनरात लगी हुई है। अपनी फूसकी झोंपटीमें हो पूर्णकाम होकर राष्ट्र सेवाका अनुपम मानन्द लेनेवाले भारत पर कुदृष्टि डालनेवाली वैदेशिक शक्तियोंको धक्का देकर पीट

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