Book Title: Chanakya Sutrani
Author(s): Ramavatar Vidyabhaskar
Publisher: Swadhyaya Mandal Pardi

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Page 660
________________ अनार्यवादोंकी आलोचना और इसीको सुखेच्छाकी पूर्ण परितप्ति मी कहते हैं । दूसरे शब्दों में सुखे. च्छा त्याग देने के रूप में सुखरूपताको अपना लेना ही मनुष्यकी मात्यान्तिक दुःखनिवत्ति है। समाज में इस मादर्शको मूर्तिमान कर डालना ही भार्य चाणक्यकी व्यावहारिक आध्यात्मिकता थी और इसीको वे लोककल्याणकारिणो राजनीति भी कहते थे। आर्य चाणक्य आध्यात्मिकता तथा राज. नीतिको अभिन्न मानते थे । उन जैसे बुद्धिमानकी दृष्टि में वे दोनों एक थे । उनके मन्तव्यानुसार राजनीति तथा माध्यात्मिकताको एक ( अभिन ) समझ लेना ही ज्ञानकी स्थिति है । राजनीतिको आध्यात्मिकतासे अलग समझ लेना ही भोगाकांक्षा है. व्यक्तिगत सखान्वेषण है और साथ हो राष्ट्रद्रोह भी है । दूसरे शब्दों में राजनीतिसे अलग रहकर आध्यात्मिक बननेको भावना अपने हितको समाजके हितसे अलग समझनेवाली निन्दित प्रवृत्ति है । इस प्रकार की भावना अत्याचारी मासुरी शकिके साथ क्रियात्मक सहानुभूति भी है और देशद्रोह भी है। भाजके संसारमें प्राय: भोगलक्ष्यवाले संगठन होते हैं। भोगलक्ष्यवाले संगठन सदा ही राष्ट्र में भोगाग्नि सलगाते हैं, द्वेष फैलात है, देशको भित्र भिन्न स्वार्थी दलों में बांटते हैं, और परिणामस्वरूप शान्तिका द्राई करने. वाले हो जाते हैं । इस प्रकार के संगठन मनुष्यममाजकी एकताको नष्ट कर डालते और उसे छिन्नभिन्न करके शनिहीन बना डालते हैं । इस प्रकार के भोगलक्ष्यवाले संगठन लोगोंकी मनुष्यताको ना पैरों तले रौढ देते हैं और उन्हें एक दूसरेका लुटेरा तथा सामाजिक दृष्टि से मंधा बना देते हैं। इस लिये बना देते हैं कि अंधों का शोषण तथा आखेट दोनों ही सुगम होत हैं । समाजके धूनतम लोग इस प्रकार के संगठनोंका नेतत्व किया करते हैं । ये लोग उज्ज्वलवेषी धूर्त होते हैं और कानूनकी पकडमें न पाकर अपने माप सामाजिक अपराध करते रहने की छूट पा लेते हैं। य लोग कानूनसे भी ऊंचा पद लेकर रहते हैं। ये कानून के अनुसार नहीं चलते। ये तो कानूनको सपने अनुसार चलाते हैं। प्रबन्ध सब जटिलताओंको सुलझाने के लिये जब चाहते हैं कानून में संशोधन कर या करा लेते हैं। ये लोग चोर नाम

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