Book Title: Chanakya Sutrani
Author(s): Ramavatar Vidyabhaskar
Publisher: Swadhyaya Mandal Pardi

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Page 659
________________ चाणक्यसूत्राणि ऐसे परिवारका पुत्र पिता पर होनेवाले अत्याचारको अपने पर हुआ भत्या. चार मानकर उसके प्रतिकारके लिये उद्यत नहीं होता। इसी प्रकार भ्राता मादि अन्य सब पारिवारिक किसी व्यक्ति पर होनेवाले अत्याचार के कर्तव्य. हीन नपुंसक तटस्थ द्रष्टामात्र बनकर खडे देखते रह जाते हैं । परिवारों में से हो तो राष्ट्र बनते हैं । देशके परिवार जिस मनोवृत्ति के होते हैं राष्ट्र भी वैसा ही बन जाता है। परिवार भोगवादी होंगे और भोगवादके प्रभाव से परस्पर सहयोग नहीं कर रहे होंगे तो देशको सेवक कहांसे मिलेंगे ? इस प्रकारके भोगवादी परिवारों के मिलनसे बननेवाले राष्ट निबंल राष्ट्र होते हैं। इस प्रकार के राष्ट्र कुछ स्वार्थी महत्वाकांक्षी लोगोंकी लूट, हिंसा, द्वेष आदि दोषों को चरितार्थ करने के क्षेत्र मात्र बन कर रह जाते हैं। आपके वर्तमान भारतका भी यही राष्ट्रीय चित्र है। ___ मोगके लिये जो कोई उद्यम किया जाता है उस ( उद्यम) का कोह भी नैतिक माधार नहीं होता । नैतिकताका प्रश्न उठते ही भोग प्रयोजन. वाले उद्देश्यों को वहां ठहरने का साहस ही नहीं होता। जो उद्यम समाजक कल्याणकी दृष्टि से किये जाते हैं वे ही नैतिकताको भित्तिपर दृढतासे खड रह सकते हैं। अपनी भोगेच्छाको अवैध ढंगसे परितृप्त करने की भावना ही अनैतिकता बन जाती है । भोगेच्छा ही अनैतिकताकी जननी है। भोगे. च्छाका नियन्त्रण तथा अवहेलनाके द्वारा समाजकल्याणमें उपयोग करना ही नैतिकता है। समाजकल्याणको स्वीकार कर लेनेवाली कर्तव्य-बुद्धि ही नैतिकताकी सभ्रान्त परिभाषा है। मार्योंकी समाजव्यवस्थाका आदर्श इसी नैतिकताकी भित्ति पर आधारित है। मात्यन्तिक दुःख निवृत्ति ही भारतीय समाजव्यवस्थाका मादर्श है। आर्य चाणक्यने अपने निःस्पृह कर्मठ जोवनके उदाहरणसे सामाजिक भात्यन्तिक दुःखनिवृत्ति नामवाली माध्यात्मिकताका यही व्यावहारिक राजमार्ग भारतको दिखाया है । उसने अपनी व्यक्तिगत सुखेच्छाको समाजकी सुखसुविधा (शान्ति ) में विलीन कर डाला था। अपनी व्यक्तिगत सुखेच्छाको समाजकी सुख शान्तिमें विलीन कर डालना ही आत्यन्तिक दुःखनिवत्ति है

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