Book Title: Chanakya Sutrani
Author(s): Ramavatar Vidyabhaskar
Publisher: Swadhyaya Mandal Pardi

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Page 684
________________ शीर्षक सूची ५७ करो का कसोटी २१५ महत्व शीर्षक सूची पृष शीर्षक सूची पृह बिगडे कर्मका स्वयं निरीक्षण २०८ दुष्टोंसे सम्बन्ध हानिकारक दुःसाहस मूोंका स्वभाव, हितैषिता ही बन्धुता २२७ __ मूखाँसे वाग्युद्ध अकर्तव्य २०९ विश्वासके अयोग्य ૨૨૮ दुष्टोंको बलसे समझाना संभव २१० इस समय शत्रुता न करनेवाले मुखोंके सच्चे मित्र नहीं होते, भी शत्रुको नष्ट करने में प्रमाद कर्तव्य ही मानवका अनुपम मत करो मित्र २१२ विपत्ति या दुर्व्यसनको छोटा धर्मका महत्व मानकर उपेक्षा न करो २३० धर्मकी माता | धन उपार्जनीय है मनुष्यताकी रक्षा ही सत्य और धनार्जनके प्रयत्न स्थगित मत दानके ठीक होने की कसोटी २१५ : मनुष्यताकी रक्षारूपी कर्तव्य दरिद्रताके दोष __ पालन विश्वविजयका साधन २१६ कर्तव्यनिष्ट मौतसे भी नहीं मरता नीच अपमानसे नहीं डरता, मनमें पाप बढनेपर धर्मका व्यवहार कुशलकी निभयता, अपमान २१७ जितेन्द्रियकी निर्भयता, व्यवहारकुशलता ही बुद्धिमत्त। सफल जीवनकी निभयता २३५ है, निन्दित काम मत करो २१९ साधुकी उदार हाट २३८ विनाशके चिन्ह, पिशुनको गुप्त परधन के सम्बन्धमें श्रेष्ट नीति २३९ बात न बताओ २२० परधनलोलुपतासे हानि, पररहस्य सुनना अकर्तव्य २२१ परधन की अग्राह्यता २४० राज्यसंस्थाका नौकरशाही बन. चारी मनुष्यका सर्वाधिक विनाश, जाना पापमूलक तथा पाप. समाजमें नैतिकताके आदर्शजनक २२२ की रक्षाके लिये अल्पसाध. हितैषियोंकी उपेक्षा अकर्तव्य २२४ नोंसे जीवन बिताने का व्रत स्वजनोंसे स्वार्थलोलुप व्यवहार लो, साधनांक उपयोगका हानिकारक उचित समय पहचानो

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