Book Title: Chanakya Sutrani
Author(s): Ramavatar Vidyabhaskar
Publisher: Swadhyaya Mandal Pardi

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Page 690
________________ शीर्षक सूची पृष्ठ शीर्षक सूची पृष्ट शीर्षक सूची नारीका सर्वश्रेष्ट देव ४६५ अनार्यकी निर्दयता ४८८ अतिथि-पूजा ४६६ शत्रुके प्रति बुद्धिमान्का दृष्टिकोण ४८९ दान दैनिक कर्तव्य ४६७ सभामें शत्रुसे व्यवहारकी नीति, दान अव्यर्थ साथी ४६९ शत्रुको अपना निर्बल रूप शत्रुके। पछाडनेका उपाय, अजिते- मत दिखाओ न्द्रियतासे पराजय निश्चित १७० सहनशील ताकी प्रशंसा ४९२ अजितेन्द्रियतासे ठगईमें आना क्षमासे प्रतिकारका सामथ्य ४९४ निश्चित आपत्कालीन कोश आवश्यक ४९५ दुर्विनीत उलहने से न मानकर असत्यविरोधी वीरोंकी सहायता ___ दण्डसे मानता है, कसाहित्य स्वहितकारी कर्तव्य ४९७ समाजको भ्रष्ट करता है ४७२ कर्तव्य अभी करें। भूमिका स्वर्ग ४७४ धर्म व्यावहारिक हो आर्यका उदार बर्ताव ४७५ पुरुषपरीक्षा ही सर्वज्ञता आकृतिसे गुणों का प्राथमिक भानवको न पहचाननेवाला मुढ, आभास ४७६ शास्त्रकी उपयोगिता ५०१ वस्तव्य स्थानकी परिभाषा ४७७: तत्वज्ञानका अवश्यंभावी फल ५०२ विश्वासघातीकी दुर्गति ४७८ व्यवहारको मुखद बनाने का उपाय ५०३ दुर्घटनाओंसे मत घबराओ ४८० व्यवहार की धर्मसे मुख्यता साधुका आश्रितोंसे सद्वर्ताव ४८१ अर्थात् व्यवहार अंगी धर्म अनार्यका कपटी व्यवहार ४८२ उसका अंग ५०४ सद्बुद्धिहीनता ही पैशाचिकता ४८३ व्यवहार का साक्षा आत्मरक्षाके साधनों के साथ संसारभरका साक्षी यात्रा करो ४८४ साक्षीका धर्म ५०७ पुत्रस्तुति अकर्तव्य, कूटसाक्षीको हानि ५०२ स्वामीका यशोगान भृत्यकलव्य ४८५ प्रत्येक व्यवहारका अपने ऊपर राजाज्ञापालनमें विलम्ब अकर्तव्य ४८६ नम विलम्ब अक्तव्य ४८९ प्रभाव, पापीको देखने वाली भृत्यका धर्म ४८७ प्रकृतिसे साक्षी लो ५१० ५०० ० ०

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