________________
चाणक्यसूत्राणि
ब्राह्मी स्थिति भी कहाती है और यही मार्य राजनीति भी है । सुखदायी मानवधर्म यही है कि ज्ञानी मनुष्य अपने जीवनको समाजकी आखों के सामने ध्रवनक्षत्र या पाठ्यग्रन्थके रूपमें समुज्ज्वल करके रक्खे ।
मनुष्य सदिच्छासे प्रेरित होकर सदुपार्योसे धनोपार्जन करके उस धनको सत्यकी सेवामें लगाकर ( अर्थात् उप्त धनसे मानवोचित कर्तव्य करके ) सुखरूप सत्यमयी स्थितिको पा जाता है। मनुष्य के जीवन व्यापार प्रत्येक क्षण सत्याश्रित रहें यही धर्म, अर्थ तथा काम के निवर्गको पानेका भाभिप्राय है । सच्चे भार्यको केवल जीवन धारण करने के लिये ही अर्थोपार्जन नहीं करना है किन्तु उसे इसलिये अर्थोपार्जन करना है कि वह सत्य के लिये जीवित रहना चाहता है। विद्यमान व सत्यके लिये जीवित रहने की अवस्थाके नष्ट होते ही अर्थोपार्जन त्याग बैठता है । तब उसके सामने सत्यके लिये मात्मबलिदानकी स्थिति भी खरी होती है। सत्यके लिये जीवित रहना ही आयाँक अर्थोपार्जनका उद्देश्य है । सत्य के लिये अर्थोपार्जन अनिवार्य रूप से अपने व्यक्तिगत सुखका साधन न बनकर समाजके सार्व. जनिक सुख का साधन बन जाता है । यही सत्यके लिये अर्थोपार्जन ही मादर्श राष्ट्र की आधारशिला है ।