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चाणक्यसूत्राणि
नेकी व्यवस्थासे अधिक मूल्य नहीं रखतीं । किंबहुना हम स्पष्ट देख रहे है कि समाजवाद या साम्यवाद, पाश्चात्य साम्राज्यवादका ही आधुनिक अनुभव के आधारपर गठित माधुनिक संस्करण है। पाश्चात्य साम्राज्यवादके माधुनिक संस्करण इस समाजवाद, साम्यवाद या स्पष्ट शब्दों में प्रभुतावादने भोगवादी लोगों में पारस्परिक विवाद उत्पन्न कर डाला है। देशकी जनताको अनेक विद्यमान दलोंमें बॉटा दिया है और संसारको सदाके लिये मशान्तिकी भागमें जलते भुनते रहने का ही मार्ग दिखाया है। बात यह है कि समाजको भोगोंका भूखा बनाये रखनेवाला यह दीनवाद मावश्यकता पडनेपर भोगोंका विरोध करनेवाली स्वाभिमानके नामपर भोगोंपर लात मार सकनेवाली सञ्चो समाजसेवा करना ही नहीं चाहता। यह तो जिस किसी प्रकार समाजका प्रभु बन कर रहना चाहता है। सारी ही राजनैतिक पार्टियो समाजका प्रभ बन जाना चाहती है। भोगवादको लक्ष्य मान लेने में यह दोष है कि भोगेच्छाको न तो कमी मानवोचित संयम सिखाया जा सकता है और न कभी उसे तृप्त किया जा सकता है । जो मानवको मानव बनाये रखने के लिये अत्यावश्यक है।
भोगेच्छाको अस्वीकृत तो किया जा सकता है परन्तु उसे संयत और तप्त नहीं किया जा सकता । भोगेच्छाको दूसरोंका भाग छीनने तथा उन. पर अन्याय ढानेसे रोक देनेवालो कोई शक्ति संसारमें नहीं है। जो समाज व्यवस्था देहकी भोगाकांक्षाको अपना मूलाधार बनानेको भूलकर लेतो है वह कभी भो समाजमें शान्तिकी रक्षा नहीं कर सकती। देहकी भोगे. च्छाकी तृप्तिको लक्ष्य बनाना समाजघाती डरावनी स्थिति है। देहकी भोगेच्छाकी तप्तिको लक्ष्य बना लेना समाजको अनैतिक बनाकर अशान्त बना डालना है । इसके विपरीत शान्तिको मानवजीवन का लक्ष्य बना लेना समाजको नैतिकताके मार्गपर चलाना तथा उसे संयमकी सीमामें रखना है । शान्तिको मानवजीवनका लक्ष्य बनाने का ही दूसरा नाम सम्पत्तिपर मनुष्यका व्यक्तिगत अधिकार न रहना और उसका समाजके सार्वजनिक