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अलंकारोंका भी अलंकार
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( अलंकारोंका भी अलंकार ) भूषणानां भूषणं सविनया विद्या ॥३६८॥ विनयसहित विद्या सब भूषणों में श्रेष्ठ भूषण है।
विवरण- मनुष्यको विनीत नम्र, सुजन, सुग्यवहारी बनादेनेवाली विद्या संसार के समस्त भूषणोंसे श्रेष्ठ भूषण है।
पाठान्तर- भूषणानामतिभूषणं विनयो विद्या च । विनय तथा विद्या दोनोंका सहवास सब भूषणों में श्रेष्ठ भूषण है ।
सत्यनिष्ठा ही विनय है । सत्यके शासन में रहना ही विनय है। संपूर्ण विद्याओं के साथ सत्यनिष्ठाका सम्मिलित रहना ही सच्ची विद्वता है । मनुध्यमें सत्यनिष्ठा न हो तो उसकी सब विद्या भविद्या होजाती है और वह केवल लोकविनाशके काम आती है। सत्यनिष्ठाके बिना बडे-बडे विद्वान् नामधारी भयंकर हिंस्रजन्तुओसे भी भयानक ब्रासदाता बनजाते हैं। सत्य. निष्ठ विद्वानका मन संसारके सर्वश्रेष्ठ भषणसे विभषित रहता है। मनुष्य का सत्यनिष्ठारूपी भूषणसे वंचित रहना मूर्खता है । मूर्ख व्यक्तिके शरीरको भूषित करनेवाले संपूर्ण कृत्रिम भषण उसकी मखंताको ही व्यक्त करनेवाले होते हैं। वह जितना ही अपने देहको कृत्रिम पाभरणोंसे सजाता है संसारमें उतनी ही उसकी मूढता प्रगट होती है। मनुष्यकी मूर्खता मिटा डालनेवाली विद्या ही उसे विभषित करनेवाला सच्चा भूषण है । जो विद्या मनुष्यकी मुर्खता नहीं मिटापाती वह विद्या नहीं है। केवल देहको विभूषित करने की भावना मानवहृदयको विभ्रम करा देनेवाला भज्ञानान्धकार है । सत्यके प्रभावसे नम्र रहना ही विनय है। सत्यहीन विद्या भविद्या है। सत्यहीन विनय सुषुप्त भयंकर ज्वालामुखी है तथा कपटपूर्ण निकृष्ट प्रकारका वंचक औद्धत्य है। राजकाजमें नियुक्त लोगोंमें उक्त प्रकारकी सरलतासे पूर्ण, निर्दोष, नम्र वैदुष्य तथा कार्यकुशलता होनी चाहिये । राजपुरुष कार्यार्थियों के साथ ऐंठसे व्यवहार न करें तथा प्रजापर अपना मिथ्या सम्मान या प्रभाव आरोपित करने (रोब गांठने ) का दुष्प्रयत्न न करें।