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चाणक्यसूत्राणि
संकीर्ण दृष्टि में उसके इस पश्चात्तापका कारण चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त थे । चाणक्यको तो अमात्य राक्षसकी भारत साम्राज्य के महामंत्री बननेकी योग्य. ताके संबन्धमें पूरा संतोष था। परन्तु प्रान्तीयताको संकीर्ण दृष्टि रखनेवाले अमात्य राक्षस तथा मगधकी कुछ प्रजाके मनमें उत्तरपश्चिम भारत से पाये चाणक्य तथा चन्द्रगुप्तका मगध सिंहासन पर हस्तक्षेप मप्रीतिकर होने की पूरी संभावना थी । अमात्यपक्षमें इतनी उदारता तथा समग्र भारतीय रष्टिकोण नहीं था। उनके लिये प्रान्तीय भावना त्यागकर अखिल भारतीय भावनाको अपनाना एक अपरिचित नवीन समस्या थी। परन्तु चाणक्यकी उदार प्रतिभा तथा उसकी आत्मबलिदानी मनोवृत्ति ने इस समस्याको भी निर्मूल करनेका एक उपाय सोच निकाला। ___ उसने मुद्राराक्षसके शब्दों में इसका एकमात्र सरल सुगम उपाय अमात्य राक्षसको ही चन्द्रगुप्त के महामंत्रित्वका भार सौंपना पाया। उसने अपने कूट प्रयोगोंसे अमात्य राक्षसके हृदय पर अपनी उदारताकी इतनी गहरी छाप लगाई और उसे चन्द्रगुप्त का मंत्रित्व भार संभालने के लिये इस दंगसे विवश किया कि उसके पास चन्द्रगुप्तका मंत्रिपद संभालनेके अतिरिक्त कोई भी मार्ग शेष नहीं रहा । चाणक्य के इस संबन्धी कूटप्रयोगों का मुद्राराक्षसमें सुविस्तृत उल्लेख है। चाणक्य के प्रयत्नोंसे अन्तमें इन दोनों शत्रुपक्षोंका मित्रत्वमें मिलन हो गया। जो समात्य राक्षस चन्द्रगुप्त का प्रबल वैरी था उसे उसके गुणोंपर मोहित होकर युवावस्थामें उसकी इतनी राजनैतिक उन्नति देखकर विवश होकर कहना पडा
वाल एव हि लोकेन संभावितमहोन्नतिः ।
क्रमेणारूढवान् राज्यं यूथैश्वर्यमिव द्विपः ॥ (मुद्राराक्षस १३) बालकपनमें ही राजलक्षणों से युक्त होने के कारण जिस चन्द्रगुप्त के विषय में महोन्नत होनेकी संभावना बन चुकी थी, वह अब क्रमसे उन्नत होता हुभा यथैश्वर्य पा जानेवाले गजराजके समान राज्य पा गया सो ठीक ही है।
अमात्य राक्षसने चाणक्यको चन्द्रगुप्त जैसे प्रतिभाशाली सम्राट शिष्यका