Book Title: Chanakya Sutrani
Author(s): Ramavatar Vidyabhaskar
Publisher: Swadhyaya Mandal Pardi

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Page 649
________________ ६२२ चाणक्यसूत्राणि तथा न्याय राज्यका संस्थापक था। जहाँ भनार्य साम्राज्य दूसरों की स्वतंत्रता छीनता पाया गया है वहाँ मार्य साम्राज्यका लक्ष्य किसीकी स्वतंत्रता छीनना नहीं था। किन्तु स्वतन्त्रताको सुरक्षित करके मानवसमाजका भाशीर्वाद और साधुवाद पाना ही उसका एकमात्र ध्येय था। मार्य साम्राज्यका उद्देश्य राष्ट्र के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष दोनों प्रकारके चोरों तथा उन राष्ट्रकण्टकोंको निर्मूल करना था जो विश्व के स्वतन्त्र मानव परि. पारोंका विरोध किया करते थे। आर्य साम्राज्यों की समरयात्राका उद्देश्य विजित राष्ट्रोंको हताश, निराश तथा सुख सम्पत्तिहीन बना डालना नहीं था किन्तु विजित राष्ट्रोंको तुरन्त निरापद बनाकर अभय दान देकर उनकी लूट तथा उसपर अत्याचारको असंभव बनाना और उन्हें अपनी मातृहितैषिणी छत्रछायामें लेना होता था । संसार के इतिहास के पास जैसे अनार्य साम्राज्योंकी समर यात्राके विरुद्ध भयंकर अभियोग होनेपर भी उसके पास आर्य चन्द्रगुप्तकी समरयात्राके विरोध अत्याचार या लुण्ठन आदिका किसी प्रकारका कोई अभियोग नहीं है। प्रत्युत इतिहासके पास तो विजित राष्ट्रोंकी चन्द्रगुप्तके प्रति प्रगट की गई सामूहिक कृतज्ञताका ही उल्लेख मिलता है । इसलिये मिलता है कि चन्द्रगुप्त के साम्राज्यका स्वरूप विजित जनताको अपने विराट् परिवारमें सम्मिलित करके उसके ऊपर विजित जनताके निर्वाचित जनसेवकोंको स्थानिक शासनके परिचालनका भार सौंप देना होता था । चन्द्रगुप्तका साम्राज्य प्रजाको वे समस्त सुखसुविधा पहुँ. चानेका उत्तरदायित्व लेता था जो (सुखसुविधा) मानव हृदयको स्वभा. वसे प्यारी प्यारी होती है और इसीलिये राज्यव्यवस्थाको प्रजातंत्रका नाम दे देती हैं। चन्द्रगुप्त प्रत्येक विजित देशकी सदिच्छाओंका पूरा प्रतिनिधित्व करता था। इसलिये उसका साम्राज्य एकतन्त्र दीखनेपर भी प्रजातंत्र था। मैगास्थनीज तथा पाश्चात्य इतिहासकारोंके उन वर्णनोंसे, जो उन्होंने चन्द्रगुप्तके साम्राज्यको सुव्यवस्थाके संबन्धमें किये हैं स्पष्ट जाना जा सकता है कि उस समयकी प्रजा चन्द्रगुप्त के सुप्रबन्धसे इतनी सुशिक्षित

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