Book Title: Chanakya Sutrani
Author(s): Ramavatar Vidyabhaskar
Publisher: Swadhyaya Mandal Pardi

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Page 648
________________ आर्यअनार्योंकी तुलनात्मक आलोचना उन्नचेता मनुष्यता-प्रेमी भन्यायके असहिष्णु बना देनेवाले ज्ञानालोक में पहुँचा देना ही राष्ट्र की सच्ची सेवा है। __ यदि भारतवासी अपना कल्याण चाहें तो वे सबसे सवादो सहस्र वर्ष पूर्व भारतमें अपनी देवीक क्रीडा कर चुकनेवाली चाणक्य चन्द्रगुप्तकी राजनैतिक प्रतिमाको हृदयसे अपनाये । आर्य अनार्य साम्राज्योंकी तुलनात्मक आलोचना तथा 'उसाव भारतीय राएको आर्यराष्ट्र न बनने देनेवाले वर्तमान, साम्यवाद, समाजवाद आदि अनार्य राजनैतिक वादोंके प्रभावसे बचनेका सुझाव अनार्य सम्राटोका अग्रणी सिकन्दर विश्वसम्राट बनने की महत्वाकांक्षा लेकर लुटेरों का विशाल दल संगठित करके, दूसरे राष्ट्रों की स्वतंत्रता छीना करता था। स्थाली पुलाकन्यायके अनुसार अपने क्षुद्र व्यक्तिगत स्वार्थासे दूसरोंकी स्वतंत्रता छीनना ही मनार्य साम्राज्योंका निर्माण करानेवाली मूल प्रेरणा थी। चाणक्यका शिष्य चन्द्रगुप्त ' ब्राह्मणेनधितं क्षत्रम् ' ब्रह्मशक्तिके नियन्त्रणमें काम करनेवाली क्षात्रशक्तिसे सुसजित मार्य सम्राटोंका प्रतीक था। उसने भारत तथा उसके पडोसके उन छोटे छोटे राज्यों को, जो स्वयं अपनी रक्षातक करने में असमर्थ थे या जो राजधर्म विहीन होकर अपनी प्रजा पर अत्याचार या लूटका ठेकामात्र लिये बैठे थे, प्रजाके प्रति कर्तव्य पालनेवाले शक्तिशाली साम्राज्यका प्रसन्न अनुवर्ती अंग बनाकर मानव समाजको सच्ची स्वतंत्रताका अधिकारी बना लिया था। जहांतक अपनी शक्ति जा सके वहांतक प्रजाकी सेवा करनेवाली वैधानिक राज्यव्यवस्थाकी स्थापना करना ही आर्य ( भारती) साम्राज्य की कल्पनाका प्रेरक था । जहाँ भनार्य साम्राज्य आततायीपनका प्रतीक है वहाँ मार्य साम्राज्य माततायीपनका प्रतिरोधक नोट-- बटलोई के एक चावलकी परखसे समस्त चावलों के परिपाक अपरिपाकको समझ लेनेकी पद्धति के अनुसार ।

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