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राजाकी दिनचर्या
प्रतारणा, हत्या मादि मावश्यक क्रूर ( कठोर ) उपायोंका अवलम्बन करना पडता है तब वह समाजके अन्यायपरायण शत्रुओंसे जो बर्ताव करता है वह न्यायकी परिभाषामें भाजाता और समाजकल्याणकारी होजाता है । किली कर्मकी सदोषता या निदोषता कर्म के बाह्य माकारमें न रहकर उसकी प्रेरक भावनामें रहा करती है । समाजकल्याणकी भावना स्वयं ही इतनी शुद्ध है कि पापियों को दिया हुभा वधदण्ड उसकी पवित्रताको किसी भी रूपमें खण्डित नहीं कर सकता । पापियों को दण्ड देनेवाला राजा अहिंसक ही रहता है। हत्वापि स हमाँल्लोकान् न हन्ति न निवध्यते । (भगवद्गीता) तत्पापमपि न पापं यत्र महान् धर्मानुबन्धः । (नीतिवाक्यामृत) यदि राजा अन्यायी लोगों को उचित दण्ड देने में प्रमाद करता है तो वह शत्रुओंसे लाक्रान्त हुए विना नहीं रहता। राष्ट्र, समाज तथा व्यक्तियोंके शत्रुओंके विरुद्ध प्रभावशाली उपायोंका अवलम्बन करना ही प्रजा. पालन है। इमी दृष्टि से उसे 'शठे शाठ्यं समाचरेत् ' की नीतिका अवलम्बन करना पड़ता है और उसके लिये उसे पूर्ण रूपसे कार्यकुशलता तथा प्रत्येक क्षण जागरूक रहना पडता है। कुछ लोगोंने चाणक्य के हृदगत अभिप्राय को न समझकर उसे कुटिल नीतिवाला कहकर निन्दा की है और चाणक्य संबन्धी सत्य छिपाया है । कुछ लोग माज भी उसकी उपेक्षा करना चाहते हैं । ये सब वे लोग हैं जो देश में चाणक्य नीतिक मान्य हो जानेसे हानि उठानेकी सम्भावना देखते हैं । चाणक्य तो 'शठे शाठयं समा. चरेत् ' या 'मायाचारो मायया वर्तितव्यः' की नीति के प्रबल समर्थक थे। चाणक्य शठोंसे सदा ही शठता किया करते थे और करवाना चाहते थे। वे किसीकी शठताका समर्थन करनेको भी शठता मानते थे और भूलकर किसीकी शठताको अपना कोई समर्थन नहीं पाने देते थे। शठ लोग ऐसे चाणक्य की निन्दा करें और उससे शत्रुता रक्खें तो इसमें आर्य क्या है ? वास्तविकता यह है कि चाणक्यकी निन्दा उनके निन्दकों को ही शठ सिद्ध कर देती है।