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ऐतिहासिकोका वर्तमान कर्तव्य
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है। परन्तु जिन षड्यंत्रकारियोंने वर्तमान भारतके सरचे इतिहासको मिथ्याकी चादरसे ढक डाला है वे लोलुप लोग चाणक्य चन्द्रगुप्तकी निःस्पृह देश सेवाके मादर्शकी उपेक्षा करने में ही अपना व्यक्तिगत लाम समझते हैं । यदि देश अपनी आँखोंसे काम ले तो निश्चय ही ये लोग राज्यलोभी भौर देशद्रोही माने जाय । इन लोगोंने जनताले विश्वासघात करके राज्य हथियानेका कुदृष्टान्त ही देशके सामने उपस्थित किया है और राजा कालस्य कारणम् ' के अनुसार देशभरपर चरित्र हीनताकी छाप लगा डाली है । ये लोग तो अपनी करनी कर चुके । अब भारत के ऐतिहासिकों के सिर राष्ट्रीय भादर्शकी रक्षा करनेके कर्तव्यको करनेका अवसर मा खडा हुआ है । राट्रीय भादर्शकी रक्षा करनेका उत्तरदायित्व इन राज्यलोभी लोगोंके भरोसे पर नहीं छोडा जा सकता ! छोड दिया जाय तो देशका निश्चित भकल्याण होना है। इस समय भारत के ऐतिहासिकोका कर्तव्य है कि वे इन भादर्शघातियों का भंडाफोड करे और भारत सन्तानके सम्मुख चाणक्यकी राष्ट्र-सेवावाले निर्मल आदर्शको सदाके लिये उज्ज्वल तथा अमिट बनाकर सुरक्षित कर डाले।।
हमारे देश के साहित्यसेवी जाने कि चाणक्य चन्द्रगप्तका पदानुसरण ही वीर पूजा है । किन्हीं महापुरुषोंका नाम रट लेना मात्र या उन्हें शाब्दिक अन्दांजलि अर्पण कर देना मात्र वीर पूजा नहीं है । श्रद्धेय वीर जैसा वीर बन जाना ही सरची वीर पूजा है। 'देवो भूत्वा देवं यजेत् ' जैसे देव बनकर ही देव पूजा होती है इसी प्रकार वीर बनकर वीरका गुणगान होता है । वीर बने विना वीरका गुणगान करना तो वीरताका उपहास है। साहित्यकी सार्थकता यह है कि वह समाजका सरचा कल्याण करनेवाला अभिन्न सार्थी बने और उसके हितमें रत रहे । ऐसे मादर्श साहित्यनिर्माणसे बचनेवाले साहित्यिक कुसाहित्य उत्पन्न करने के कारण देशद्रोही हैं ।
सिकन्दरकी नृशंसता भारतके प्राचीन तथा वर्तमान पाहिरियकोंकी दृष्टि में कठोरतम भाषामें निंदनीय है और सिकन्दरके संपूर्ण मनुष्य समा