Book Title: Chanakya Sutrani
Author(s): Ramavatar Vidyabhaskar
Publisher: Swadhyaya Mandal Pardi

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Page 634
________________ चन्द्रगुप्त नंद वंशका नहीं था ६०७ दण्डो हि केवलो लोकं परं चमं च रक्षति राज्ञः पुत्रे च शत्री च यथादोषं समं धृतः । अनुशासद्धि धर्माण व्यवहारण संस्थया न्यायेन च चतुर्थन चतुरन्तां महीं जयेत् । ३-१ दण्ड अकेला ही इस तथा परलोककी रक्षा करता है। वह सुप्रयुक्त होने पर प्रयोक्ताको उभयलोकका सुख भोग देता है, यदि वह पुत्र और शत्रुमें अपराध अनुरूप निर्विशेष भावसे प्रयुक्त किया जाय । धर्मानुसार साक्षी वाक्यानुसार लोकाचारके अनुसार तथा न्यायानुसार लोकको न्याय. मार्गपर रखनेवाला राजा चतु:समुद्रा भूमिको प्राप्त कर सकता अर्थात सार्वभीम राजा बन सकता है ।। पाश्चात्य इतिहासकाहोंने चन्द्रगुप्तको मुक्त कंठसे जगतका सर्वश्रेष्ठ सम्राट स्वीकार किया है। अधिक विस्तार में न जाकर संक्षेपमें यही कहना पयास होगा कि चन्द्रगुप्त चाणक्य के अर्थशास्त्रका मूर्तिमान भादर्श था और उसकी राज्यव्यवस्था सर्वांगसुन्दर थी। उसकी राज्यव्यवस्थाकी सवागसुन्दरताका प्राण या मुख्य कारण चन्द्रगुप्त का मनथक परिश्रम कर्तव्यनिष्ठा तथा प्रजा वात्सल्य था। 'प्रजाः पुत्रानिवौरसान् । ' राजा प्रजाके लिये सन्तान के समान स्नेह रक्खे यही मादर्श राजचरित्र है । चन्द्रगुप्त इस आदर्शका मूर्तिमान दृष्टान्त था। यद्यपि उस समय न तो माधुनिक ढंगके वैज्ञानिक आविष्कार थे और न शासनदण्डको सुदूर राष्ट्र के व्यक्तिकी रक्षाके लिये प्रत्येक न्यायार्थी अत्याचारिताके पास पहुँचानेवाले आधुनिक साधन उपलब्ध थे तो भी उन्होंने अपनी राज्यव्यवस्थामें लोककल्याणकारिणी, नवनवोन्मेषशालिनी प्रति. भाके बलसे इतनी नवीनतम सुविधायें पैदा कर ली थीं कि उसके लिये इतिहास उनकी शतमुखसे प्रशंसा कर रहा है। भारत के इस छोरसे उस छोरतक सुखशान्ति बरस रही थी। घरबार, राह, घाट आदिमें सर्वत्र नैतिकताका बोलबाला था। चन्द्रगुप्तकी सुव्यवस्थाके सम्बन्धमें इतिहास

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