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साम्राट चन्द्रगुप्त
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गोमांसखादको यस्तु विरुद्धं बहु भाषते सर्वाचारपरिभ्रष्टो म्लेच्छ इत्यभिधीयते । अपना धर्माचरण त्याग देनेवाले क्याहीन, परपीडक, क्रूर, हिंसक, अविवेकी म्लेच्छ कहाते हैं । गोमांस खानेवाले मार्य मन्तव्यों के विरुद्ध बोलनेवाले माचारहीन लोग म्लेच्छ कहाते हैं । भारतीय भाषामें मनुष्य समाजमेसे मनुष्यताको विलुप्त करनेवाले लोग आततायी, असर, म्लेच्छ, राक्षस आदि नामोसे कहे जाते हैं । इन नामोंसे कहे जानेवाले शत्रुओंको आततायीके रूपमें वध्य माना गया है। मनुष्यसमाजमें जो समय समयपर अवतार भव. तीर्ण होते हैं वे इस मसुरदलसंहारिणी शत्रुविनाशिनी शक्तिको लकर ही होते हैं । यही अवतारकी परिभाषा है।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥ ( भगवद्गीता ) भारतके लोगोंने जब कभी किसीको म्लेच्छदमन या असुरसंहार करते देखा है तब ही उन्होंने उसे अवतार नाम देकर मनुष्यसमाजमें सर्वोच्च पूज्य स्थान दिया है। इन अवतारोंके मनोंकी असुर संहार करनेवाली भावना ही विष्णु है । “भाव हि विद्यते देवः ।' विशिष्ट समाजसेवकोंका देह विराट् समाजकी सेवाका कर्मयन्त्र होनेसे समाजमें अवतार नामसे पूजा जाने लगता है । अवतार वैष्णवी शक्तिका यंत्र मात्र होता है। यन्त्रको यन्त्रीको आवश्यकता होती है। यन्त्रीके बिना यन्त्र होता ही नहीं। जब हम भारतकी भूमिले असरभार उतारने के संबन्ध में पानी कृतज्ञता प्रकट करना चाहते हैं तब चन्द्रगुप्त को विष्णु के अवतार नामसे सम्मानित करते हैं । जब हम चन्द्रगुप्तको अवतार के नामसे सम्मानित करते हैं तब उसे चाणक्यसे अलग नहीं रख सकते । जब हम चन्द्रगुप्तको विष्णुका अवतार मानते हैं तब भाचार्य चाणक्य को साक्षात विष्णु कहना पड़ता है। विप्र चाणक्य की राजनैतिक सूझबूझने चन्द्रगुप्तके देहमें माकर क्षात्ररूप धारण कर लिया था। माचार्य विष्णुगुप्तकी समस्त राजनीतिक योजनामोको मूर्त. रूप देना चन्द्रगुप्तका ही काम था।