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आर्य चाणक्यका इतिवृत्त
भारतको प्रत्युत समग्र संसारको राजनीतिका अनन्यसुलभ पाठ सिखानेवाले चाणक्यके चरित्रका संपूर्ण चित्रण करनेके लिये तो उन्हों यों कहना उपयुक्त होगा कि यह समग्र वसुन्धरा ही उनकी जन्मभूमि थी तथा मानवमात्र उनके सहोदर सहोदरा थे और मनुष्यता ही उनका आराध्य भगवान् था ।
स पुमानर्थवजन्मा यस्य नाम्नि पुरः स्थिते । नान्यामंगुलिमन्येति संख्यायामुद्यतांगुलिः ॥
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सार्थक जन्म उसी मनुष्यका माना जाता है कि गुणियोंकी गणना प्रारंभ हो जाने पर गिननेवाली अंगुलि उसीके लिये उठकर रद्द जाय और उसके साथ दूसरा कोई गिना ही न जा सके ।
जैसा
वास्तव में चाणक्य अपने जैसे अपने आप ही थे | संसारने उन दूसरा कोई व्यक्ति आजतक पैदा नहीं किया यह कहना अत्युक्ति नहीं है । उन्होंने अर्थशास्त्र के नाम से जो कुछ लिखा है वह कर चुकनेके पश्चात् लिखा है । उनके लेख अननुभूत तथा अव्यवहारिक नहीं हैं । यही उनकी लेखनीकी विशेषता या अनन्यसाधारणता है। उन जैसे कर्मठ लेखक संसार में कितने हैं ?
सर्वशास्त्राण्यनुक्रम्य प्रयोगमुपलभ्य च ।
कौटल्येन नरेन्द्रार्थे शासनस्य विधिः कृतः ॥
कौटल्यने बाईस्पत्य आदि समस्त अर्थशास्त्रोंको समझकर तथा उनके व्यवहारिक प्रयोगोंको करके देखकर उन भाचार्योंके मतों में अपना अनुभव मिलाकर शासनको सुदृढ बनाने तथा उसका विधिपूर्वक संचालन करानेके अभिप्राय से चन्द्रगुप्त के लिये शास्त्रको रचना की । जैसे गीता अर्जुन के लिये कही जानेपर भी परम्परासे सबसे कही गई हैं, इसी प्रकार अर्थशास्त्र चन्द्रगुप्त के लिये रचा जानेपर भी संसारभरकी राज्यव्यवस्थाओंका मार्गदर्शक है ।
जब यह सिद्ध किया जा चुका कि चन्द्रगुप्त मगधका निवासी तथा नन्दवंशका नहीं था तब चाणक्यको चन्द्रगुप्त तथा नन्दोंके कौटुम्बिक