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चाणक्यसूत्राणि
सूर्य भी पहले अपने प्रकाशसे रात के किये अँधेरेको छिन्न-भिन्न किये बिना उदित नहीं होता ।
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बलवानपि कोपजन्मनस्तमसो नाभिभवं रुणद्धि यः । क्षयपक्ष इवैन्दवः कलाः सकला हन्ति स शक्तिसंपदः ॥
बलवान् भी जो कोपजन्य मोहके आक्रमणको व्यर्थ नहीं बना लेता, वह क्षयपक्ष में घटती चली जानेवाली चन्द्रकलाओंके समान अपनी समस्त शक्तियों को अपने भाप नष्ट कर डालता है। क्रोधान्धका लोकोत्तर सामर्थ्य भी व्यर्थ हो जाता है ।
( क्षमासे प्रतिकारका सामर्थ्य )
क्षमावानेव सर्वं साधयति ।। ५३६ ॥
क्षमावान् (दुःख, अपमान, कटुवचन, धन-जन-हानि आदिको स्थिर बुद्धितासे सह कर अपना कर्तव्य करते चले जानेवाला ) ही सब कार्यों में सिद्धि पाता है ।
दुष्टों की
विवरण - अनिष्ट देखकर आपसे बाहर न होकर अनिष्टकारीके साथ धीरज तथा कौशल के साथ यथोचित बर्ताव करना ही क्षमाका पूरा अर्थ है । क्षमा और विजय एक ही अर्थको प्रकट करते हैं । क्षमाका अर्थ विषरीत घटनाका प्रतिकार छोड देना कदापि नहीं है किन्तु विपरीत घटना के दर्शन से निर्बल न होकर स्वीकृत कर्तव्य करते चले जाना हैं। दुष्टताका प्रतिकार न करना या दुष्टताको सह लेना क्षमा नहीं है। दुष्टापराध-सहन किसी भी रूपमें क्षमा नहीं है । प्रत्युत क्षमाशील ही दुष्टों की दुष्टताका उचित प्रतिकार कर सकता है । अक्षमाशील लोग उत्तेजित होकर अन्याय, अत्याचार या आक्रमणका यथोचित प्रतिकार करनेके अयोग्य हो जाते हैं ।
पाठान्तर -- क्षमावानेव जयति लोकान् । पाठान्तर - क्षमायुक्ताः ः सर्व साधयन्ति