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तपोवृद्धिका साधन
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देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम् । ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ॥ अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत् स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते ॥ मनःप्रसादः सौम्यत्वं मोनमात्मविनिग्रहः । भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते ॥
देव, द्विज, गुरु तथा बुद्धिमानोंका पूजन, शौच, ऋजुता, ब्रह्मचर्यं तथा अहिंसा शारीरिक त है । अनुद्वेगकारी सत्यप्रिय, दितकारी वाणी तथा स्वाध्याय करानेवाले सद्ग्रन्थोंका अभ्यास वाणीका तप है । मनका नैर्मल्य, सौम्यस्त्र, मौन, आत्मविनिग्रह, भावशुद्धि यह मानम तप कहाता है । पाठान्तर- तपसा स्वर्गमवाप्नोति ।
(तपोवृद्धिका साधन )
क्षमायुक्तस्य तपो विवर्धते ॥ ५७० ॥
क्षमाशीलकी तपोवृद्धि होती है ।
विवरण -- क्षमाके अर्थके विषय में संसारको पर्याप्त भ्रम है। अपराश्रीको दण्ड न देना ही प्रायः क्षमाका अर्थ बन बैठा है। यह जये समाजव्यवस्थाका प्रबल श है | इसलिये क्षमा शब्दका यह अर्थ किसी भी प्रकार संभव नहीं है । वास्तव में यह शब्द ऐसे प्रसंगके लिये बना ही नहीं है । यदि क्षमा शब्दका अपराधीको दण्ड न देना रूपी प्रचलित अर्थ मान लिया जाय तो क्षमाशील बननेके नामपर अपराधियों को दण्ड देनेके लिये बनाये हुए न्यायालय बन्द कर देने पडे | आइये इस दृष्टिसे क्षमा शब्दका अर्थ ढूँढ --- हमें क्षमा शब्दका ऐसा अर्थ ढूँढना पढेगा कि इस समाज में सुव्यवस्था रखनेके लिये अपराधीको अदण्डित भी न रहने दें और क्षमाशील भी बने रह सकें । शत्रुके प्रति क्रोधको कभी न भूलना तथा उसे उसके अपराधका बदला भी देकर छोडना धमर्रक्षक धार्मिक लोगोंका