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चाणक्यसूत्राणि
जीवति शाल्मली' शाल्मलीका वृक्ष साठ हजार वर्षतक जीवित रहता है। इसीसे शाल्मलीका दूसरा नाम 'स्थिरायु ' भी है । पाठान्तर- अतिप्रवृद्धा शाल्मलिन वारणस्तम्बः ।
अतिदीर्घोऽपि कर्णिकारो न मुसली ॥ ४२४ ॥ जैसे कनकचम्पा ( या कनेर ) चाहे जितना लम्बा और मोटा होजानपर भी मूसल बनाने के काम नहीं आता, इसी प्रकार निर्बल मनवालेके पास चाहे जितने भौतिक साधन होजानेपर भी वह वलके काम नहीं कर सकते ।
पाठान्तर- न दीर्घोऽपि कर्णिकारः मूसलो भवति । विशालकाय भी कनेर मूसल नहीं बन सकता।
(निर्बल मनसे बलके काम नहीं किये जाते ) अतिदीप्तोऽपि खद्योतो न पावकः ॥ ४५५ ॥ जैसे खद्योत चाहे जितना दीप्तिमान होने पर भी अपने शक्तिवैकल्यके कारण आगका काम नहीं दे सकता, इसी प्रकार निर्वल मनवालासे बलका काम नहीं हुआ करता।
पाठान्तर- अतिज्वलितोऽपि खद्योतो न पावके नियुज्यते ।
जैसे अति प्रज्वलित भी खद्योत मागके स्थानमें उपयुक्त नहीं होता, इसी प्रकार निर्बलोंसे बल के काम नहीं होते।
( बडोंका गुणी होना अनिवार्य नहीं )
न प्रवृद्धत्वं गुणहेतुः ॥ ४५६ ॥ किसीका किसी बातमें वृद्धि पा जाना उसके गुणी भी होने का प्रमाण या साधक नहीं है ।
विवरण- किसोका अवस्था धन, विद्या, यश आदिसे वृद्धि पा जाना अतिमान्य, यशस्वी या महावृद्धिसम्पन्न होजाना उसके धीरता, उदरता,