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चाणक्यसूत्राण
( अन्धा विरोध अकर्तव्य ) विवादे धर्ममनुस्मरेत् ॥ ४८९ ॥
विवाद ( कलह ) के समय धर्मको भूल मत जाओ । धर्मको कलहके समय भी अपनाये रहो ।
विवरण - मनुष्य विवाद के समय धर्मको अपनाये रहे तो किसीपर अन्याय और अत्याचार करनेसे बचा रह सकता है । विवादका शान्ति पूर्वक निर्णय तब ही होता है जब निर्णायक धार्मिक हो ।
विवाद के समय अन्धा होकर किसीका विरोध न करना चाहिये । एक आँख से लडना चाहिये और दूसरीसे अपना कर्तव्य - शास्त्र देखते रहना चाहिये । अन्धा विरोध मनुष्यका आत्मघात है । धर्म स्मरणसे ही विवादको मर्यादाका ज्ञान होता है । मनुष्य धर्ममर्यादाके विस्मरणसे ही अन्याय और अत्याचार करता है ।
पाठान्तर-- विवादे कार्यमनुस्मरेत् ।
विवाद के समय अपना मुख्य लक्ष्य ध्यानमें रक्खे । उसपर आंच आनेवाली बात न होने दे ।
( दैनिक कर्तव्यों पर चिन्ताका काल )
निशान्ते कार्यं चिन्तयेत् ॥ ४९० ॥
मनुष्य रात्रिका विश्राम समाप्त हो जानेपर ( ब्राह्ममुहूर्त में ) अपने दिनभर करनेके समस्त कामोंका (आदिले अन्ततक सांगोपांग ) विचार किया करे ।
विवरण -- प्रभातकाल या ब्राह्ममुहूर्त के समय मनुष्य की बुद्धिवृत्ति सतेज उद्भावनशील तथा नवीन होती है । उस समय शरीर, इन्द्रिय तथा मन तीनों स्वभावसे स्थिर, स्वस्थ और शान्त होते हैं। कार्य-चिन्ता या दैनिक कार्यक्रम बनानेका काम अत्यन्त गंभीर है । यह काम कार्यकी अधि कता से मनके व्यग्र या चंचल हो जानेपर दिन के समय उतना अच्छा होना संभव नहीं है । निशान्तचिन्ता के विषय में मनुने कहा है