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ऐश्वर्यान्ध निर्विवेक
विवरण- राज्यैश्वर्य पाकर अंधा बना हुआ सजा या राज्याधिकारी अपने संपर्क में थानेवालों की उपेक्षा करता तथा राष्ट्रके गुणी लोगोंके हितोपदेशपर काम नहीं देता। जब कि मनोविकार धनगर्वित साधारण व्यक्तिमें भी अनिवार्य रूपसे आ जाते हैं तब हाथमें राज्यैश्वर्य जैसी महा. शक्ति पा जानेवाले व्यक्किमें मनोविकारोंका आना स्वाभाविक है। जब राज्यै. श्वर्य पा जानेवाले लोग अपने आपको राष्ट्र के सेवक न समझकर राष्ट्रके प्रभु या शासक जातिके स्वेच्छाचारके विशेषाधिकारी नरत्न मान बैठते हैं तब इन लोगों की उद्दण्डताकी कोई सीमा नहीं रहती । कर्तव्य के अनुरोधसे देशके गण्य, मान्य, बुद्धिमान् स्वाभिमानी लोगों के इन उद्दण्ट लोगों के पाप जाने के अवसर माते ही रहते हैं।
अपने अनैतिक प्रयत्नोंसे शासकपदोंपर चढ़ पैठ हुए ये असुर लोग अपने उद्दण्ड स्वभावसे विवश होकर लोगों के साथ शिष्टाचार बरतना अपने शासकीय मिथ्या गौरवके विरुद्ध समझ लेते और नाक-मी चढाकर अपने द्वारपर मानेवाले भद्र पुरुषों का अपमान या उपेक्षा किये बिना नहीं मानते। ये लोग ऐसे भ्रष्ट होजाते हैं कि राष्ट्रका लोकमत राष्ट्रकल्याणकी दृष्टि से इनके भासुरीपनके विरुद्ध चाहे जितनी रोल मचाता रहे या इनके अधिकारोष्ण मस्तिष्कको शीतल करने के लिये कर्तव्यपरायणता तथा राष्ट. सेवाके चाहे जितने हितोपदेश सुनाया करे, वे इनके बहरे कानों में प्रवेश नहीं कर पाते। इन लोगोंके उत्तेजक स्वभाव राष्ट्रमें अशान्ति उत्पन्न करके विद्रोहाग्नि भडकाकर अन्त में इन लोगों को लंकाभ्रष्ट रावणके समान राज्य भ्रष्ट किये विना नहीं मानते ।
धनांधों की राष्ट्र के योग्य लोगों को न पहचानने तथा उनका हितोपदेश न सुनने की यह प्रवृत्ति उन्हीके विनाशकी पूर्व सूचना है। विपत्ति पाने के समय मनुष्य की बुद्धि, मन और इन्द्रियाँ विकल होजाती हैं । 'प्रायः समापन्नविपत्तिकाले धियोऽपि पुसां मलिनीभवति ' जखे ऐन्द्रि यक विषयों के अति सेवनसे शरीर में रक्तका हास होकर आँखों में तैमिरिक