________________
चाणक्यसूत्राणि
कालक्रमेण जगतः परिवर्तनीया।
चक्रारपंक्तिरिव गच्छति लोकपंक्तिः ॥ (भारवि ) भागे पीछे पंक्ति (डार ) बनाकर उडमेवाले सारस पक्षियोंके समान लोग प्रवाहके पीछे दौडा करते हैं, वे सब कुछ लोक दृष्टान्तोंको ही आधार बनाकर करते हैं । लोक ही उनका शास्त्र होता है।
संसारमें देवी और मासुरी दो प्रकारकी प्रवृत्तियाँ सदासे चली भारहीं हैं। शुभप्रवाहमें प्रवाहित होनेवाले लोग शुभकर्मी और अशुभप्रवाहमें प्रवाहित होनेवाली प्रजा अशुभकर्मी हो जाती है । सर्वसाधारणके लिये विचारपूर्वक काम करना शक्य नहीं होता । साधारण प्राणी सोचकर काम नहीं करता । वह तो करके सोचता है । करके सोचनेका परिणाम पश्चात्ताप और दुःख होता है। परन्तु साधारण जनताके पास इस दुःखदायी मार्गसे बचनेकी बुद्धि नहीं होती और वह दुःख-परम्परामें ही उलझी पडी रहती है । जो व्यक्ति स्वयं हिताहितविचारसे शून्य है उसके गतानुगतिकतासे शुभकर्मा दीखनेपर भी उसके शुभ चरित्रका, ज्ञानपूर्वक न बनाकर अकस्मात् कोई साकृति बना डालनेवाले घुन (कीट ) के निर्मित माकारके समान तबतक कोई मूल्य नहीं है जबतक वह स्वयं विचारवान् बनकर शुभाशुभमेंसे अशु. भको जानबूझकर त्यागकर शुभको जानबूझकर नहीं अपनाता ।
समाज के विवेकी लोग ही गतानुगतिक समाजको सन्मार्ग दिखाने के उत्तरदायी होते हैं । जब कहीं गतानुगतिक लोगों को कुमार्गगामी होता पामो वहीं समझ जाओ कि इस देशका विवेकी समाज अपने आपको समाजके सामने लानेमें असमर्थ ही रहा है और उसे सन्मार्ग दिखाने के धोकेसे कर्तव्यभ्रष्ट करनेवाले कपट महारमा लोग गुप्त बनकर नैष्कर्म्यका मिथ्या सन्तोष भोग रहे हैं । समाजके विवेकी लोग समाजकी सम्पत्ति होते हैं । विवेकिताका दम भरनेवाले लोगोंको सामाजिक चारित्रिक हानि करनेका कोई भाधिकार नहीं है । सच्चे विवेकिओंकी विवेकिताको समाजसेवामें उपयुक्त कराना समाजका वैध अधिकार है । इसको विवेकीके