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देवोंकी कृपा बरसानेवाला तत्व
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अज्ञातकाल से सत्यको पानेका अखण्ड उद्योग करता चला मारहा है । यही इस अनादि, अनन्त संसारक्रीडाका परम रहस्य है । यही सत्यनारायणकी अद्वैतलीला कहाती है।
( समाजव्यवस्था रखनेवाला तत्व )
सत्येन धार्यते लोकः ॥ ४१९॥ मानवसमाज सत्यसे ही सुव्यवस्थित रहता है । विवरण- समाजके सार्वजनिक कल्याणमें भात्मकल्याणबुद्धि ही सत्य है । सत्य ही मानवसमाजको धारण करनेवाला आश्रय या समाजबन्धन है। सत्यहीन समाज समाजबन्धनहीन छिन्न भिन्न स्वेच्छाचारियों का उच्छंखल झुंड है । असत्याचरणसे इस संसारमें अव्यवस्था फैलती है जो इसका सर्वनाश कर डालती है।
( देवों की कृपा बरसानेवाला तत्व )
सत्याद् देवो वर्षति ॥ ४२० ।। सत्यसे मानवसमाजके ऊपर देवोंकी कृपा बरसने लगती है। सत्याधीन समाजमें दैवीशक्ति सत्यकी वर्षा करती है। सत्यहीन समाजम आसुरीशक्ति प्रबल बन जाती है।
विवरण- समाजमें सत्याचरणके वृद्धिंगत होनेपर मानवसमाजका मधिछातृ देवता अपनी कृपावृष्टि करने लगता है। आत्मकल्याणको समाजकल्याणमें विलीन कर डालनेवाली मानवीय बद्धि ही सत्य है। यह बद्धि वह सत्य है जो देवोंको कृपा बरसानेके लिये विवश कर डालता है । इस सत्यके मूर्तिमान् अवतार, ज्ञानवृद्ध, समाजसंरक्षक, मुनि, ऋषि लोग ही कृपा बरसानेवाले देवता हैं। जैसे आकाशचारी मेघ मातपक्लान्त वसुन्धराको अमृतमय जलोंसे सींचकर हराभरा बनाये रहते हैं इसी प्रकार ये ज्ञानवृद्ध, समाजसंरक्षक, ऋषिमुनि लोग प्रागैतिहासिक काल से सत्यसुखेच्छु मानव हृदयके ऊपर शान्तिधाराकी अमर वर्षा करते चले आरहे हैं।