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सम्पन्न जीवनका माहात्म्य
लोगोंके भौतिक कुप्रभावोंसे मामरक्षा करनी चाहिये । नीचोंकी सुखसमद्वि, मान प्रतिष्ठा, सौभाग्य मादि प्रत्येक गुण समाजको पथभ्रष्ट करने तथा पतित बनाने के काम आते हैं। सूत्रकार भौतिक, सम्पत्तिशाली, यशस्वी नीचोंके सम्पर्क से होनेवाले समाजके अधःपतनके विरुद्ध उन सुधारक नाम. धारी लोगों को सावधान कर रहे हैं जो नीचोंको भौतिक सफलताओं की चकाचौंधमें अंधे होकर उनसे सम्बन्ध बढानेको उदारता, उन्नति, समाजसंशोधन मोर रामोन्नयन समझने की भ्रान्ति करके देशमाताके वक्षःस्थल पर आततायियोंसे छरी लगवाकर समस्त रामको अशान्तिकी भागमें झोंक
( ऋण, शत्रु तथा व्याधि, संबन्धों गंभीर कर्तव्य )
ऋणशत्रुव्याधिवशेषः कर्तव्यः ।। ४३५ ।। ऋण, शत्रु तथा व्याधिको निःशेष करना चाहिये। विवरण- जबतक ऋण, अग्नि, शत्रु तथा व्याधि को पूरा नि:शेष न कर डॉलो तबतक शान्तिसे मत बैठो। यदि ये शेष रह जायेंगे तो इनके बढ जानेपर इनसे अपना सम्पूर्ण विनाश हो जाने का पूरा डर है। इन्हें शेष रख लिया जायगा तो यथाक्रम दिनाश, दाह, हानि तथा मत्यु अवश्यं. भावी हो जायगी। शत्रु मान्तरवाह्य भेदसे दो प्रकार के होते हैं । पाप मनु. व्यका अंतरशत्र है। उसे पहचानकर क्षणभरमें भस्मीभूत कर डालना चाहिये । पाप मानव जीवन के सौंदर्य, सौख्य तथा यश का घातक शत्रु है। पाठान्तर--- ऋणाग्निशत्रव्याधिष्वशेषः कर्तव्यः । ऋण, अग्नि, शत्रु तथा व्याधिको निःशेष कर देना चाहिये । पाठान्तर- ऋणाग्निव्याधितवशेषः कर्तव्यः । यह पाठ अपपाठ है।
( सम्पन्न जीवनका माहात्म्य ) भूत्यनुवर्तनं पुरुषस्य रसायनम् ।। ४३६ ।। सम्पत्तियुक्त जीवन विताना दीर्घायु तथा स्वास्थ्यका जनक है।