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चाणक्यसूत्राणि
नहीं है वह निर्धन है। यही बात "मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः " में कही है। पाठान्तर- लोकयात्रा दरिद्रान् वाधते ।
(सच्चा वीर )
अतिशूरो दानशूरः ॥ ४२६ ॥ दानमें शूरता दिखानेवाला सच्चा शूर है। विवरण -- अपने पास धरोहर रूप में रक्खी वस्तु को उसका सत्यरूपी वास्तविक अधिकारी पाते ही उसको उसे मोपकर उर्ऋण होने की स्थिति ही दान है । सत्यके हाथों में आत्मदान कर चुर ! व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण भौतिक शक्ति तथा सामर्थ्य को सत्यके हाथों में सौपकर सत्यको ही अपना कोषाध्यक्ष बनाकर निर्विघ्न बन जाता है। उसकी मानसिक शान्ति के सम्मुख समग्र विश्वकी प्रतिकूलता पराभूत रहती है । ___ अप्सत्य-विरोध तथा अज्ञान-संहार आदि राष्ट्रीय महत्व रखने वाले काम दानशूरों के कर्तव्यपालनकी भावनासे ही चलते हैं ।
(मानवचरित्रका आभरा ) गुरुदेवब्राह्मणेषु भक्तिभूपणम् ॥ ४२७ ।। गुरुदेव तथा ब्राह्मणों ( भूदेवों) की भक्ति ही मनुष्यको सुशोभित करनेवाला भूषण है ।
विवरण- विद्या, कौटुम्पिक संबन्ध तथा आयुमें ज्येष्ठ सदुपदेशदाता गुरु, देवीसंपत्तिरूपी भागवतसत्ता तथा तप:श्रुतिसम्पन्न ब्रह्मदर्शी ब्राह्म. णों की परमानुरक्तिरूपी भक्ति अर्थात् मारमसुधार के लिये उनके वाता. वरणमें आत्मसमर्पण करके रहना, मानवचरित्रका माभरण है। मनुष्य गुरु, ईश्वर तथा ब्रह्मवेत्ता लोगोंके साथ अहेतुक अनुराग रखने से शिष्ट, शिक्षित, सदाचारी, विश्वसनीय तथा भादरपात्र बनते हैं। पाठान्तर- भूषणं गुरुदेवव्राह्मणेषु भक्तिः ।