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चाणक्यसूत्राणि
अथवा-- कुटुम्बियोंको विश्वासघाती तथा गृह-शत्रु न बनने देने के लिए सदा सतर्क रहना चाहिए । गृह-कलहका कारण निर्मूल करके कुटुंबि. योंके बाहरी शत्रु के प्रभाव में जाने की संभावनाको दूर रखना चाहिए । कुटुंबियोंके शत्रुपक्षावलंबनके भीतिजनक परिणामको ध्यानमें रखकर उन्हें हार्दिकतासे अपनाए रहने के सर्वप्रकारके संभव प्रयत्न निष्फल होजानेपर उन्हें कौटुंबिक अधिकारसे दृढतासे वंचित कर देना ही इस सूत्रका सैद्धान्तिक अभिप्राय है।
(राजपरिषतकी गतिविधिसे परिचित रहो )
गन्तव्यं च सदा राजकुलम् ।।३७७॥ राजकुल में सदा जाना चाहिये । प्रजाके हिताहितस संबन्ध रखनेवाले राजकीय मन्तव्यों तथा निर्णयोंके परिचयोंसे लाभान्वित होते रहने के लिये सदा राजकुल (राजपरिषत् ) में जाते रहना चाहिये।
विवरण- राजकुल अर्थात् राजसभामें नियमित रूपसे उपस्थित होकर राजकाजमें सहयोग देना चाहिये । राज्य संस्था हमारी ही प्रतिनिधि संस्था है । उसका सुधार हमारा अपना ही सुधार है । वह क्या कर रही है ? यह जानते रहना तथा अपनी राज्यसंस्थाको अकर्तव्य न करने देने के लिये उसके संपर्क में रहना प्रजाका स्वहितकारी कर्तव्य है । राज्यसंस्थाके प्रति उदासीनता आजके भारतका भयंकर मात्मद्रोह है। जनतामें उद्घोप्यमान राज्यसंस्थाके प्रति उपेक्षापरक " कोड नप होऊ हमें का हानि " वाक्य नागरिकों के मारम. द्रोहका रूप है।
राजपुरुषैः सम्बन्धं कुर्यात् ॥ ३७८॥ राजकाजसे सम्बद्ध मंत्री आदि राजपुरुषोंके साथ मैत्री या परिचयका संबंध बनाये रखना व्यवहारसहायक स्वहितकारी कर्तव्य है।