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वैभव बुद्धिपर निर्भर
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मुनिपालित शुक कहता है- वह गोभक्षकों की अश्लील गालियां सुन कर गाली देता और मैं मुनिचरित्र सुन सुनकर सुवाक्य बोलता हूं । राजन् ! इसमें न उस गाली देनेवाले तोतेका कुछ दोष है और न मेरा कोई गुण है। दोषगुण संसर्गसे होते हैं। जो लोग सन्तानको सुसभ्य, सदाचारी, विद्वान् , कार्यकुशल बनाना चाहे वे उनके लिये सदाचारी विद्वानों के वातावरणका प्रवन्ध करें।
(वैभवकी भलाई बुराई बुद्धिपर निर्भर )
यथा बुद्धिस्तथा विभवः ॥४०९॥ जिसकी जैसी बुद्धि होती है उसका वैसा वैभव होता है।
विवरण- जिसकी जैसी पापपुण्यप्रिया बुद्धि होती है उसका उपार्जित या प्राप्त विभव भी उसे वैसा ही पतित या पुण्यात्मा बनाये रखने. वाला होजाता है । सुबुद्धिसे उपार्जित धन पुण्यार्जित होता और पुण्य कर्ममें ही नियुक्त होता है। जैसे मनुष्यका उपार्जित धन उसका वैभव माना जाता है इसी प्रकार उसके सदुपयोग, दुरुपयोगके सन्तोष और पश्चाताप भी तो उसके वैभवमें ही सम्मिलित हैं । गर्हित उपायोंसे उपार्जित धन दुरुप. योगका पश्चाताप उत्पन्न करनेवाला होता है। सदुपायसे उपार्जित धन अनिवार्यरूपसे सदुपयुक्त होकर उसे अक्षय सन्तोषरूपी वैभवसे सम्पन्न बनाये रखता है । जिस मनुष्यका धन समाज कल्याणमें सदुपयुक्त होकर मनष्य. समाजको मनुष्यतारूपी अक्षय देवी सम्पत्तिसे सम्पन्न बनाये रखने के काम आता है संपूर्ण राष्ट्र ही उस उदार मानवका वैभव बन जाता है । ऐसा मनुष्य अपने सदुपार्जित धनको समाजसेवामें समर्पित करके जल बरसाकर रीते लघु मेघों के समान रिक्तहस्त बनकर समस्त राष्ट्रकी मनुष्यताके गौरवसे परिपूर्ण होजाता है । इस प्रकारको गौरवपूर्ण स्थिति ही मनुष्यको उसकी सुबुद्धिसे प्रास होनेवाला वैभव है। कुबुद्धिसे उपार्जित धन पापार्जित होता है और उसका पापकोंमें नियुक्त होना अनिवार्य होजाता है । ऐसी अव. स्थामें पापबुद्धिसे धनोपार्जन करनेवाले लोगों के धन किसी भी अच्छे काममें