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चाणक्यसूत्राणि
वीरता, साधुता, सादगी आदि सद्गुण देखती है, वहीं उसकी भोर उपेक्षा तथा उपहासपरायण घृणाभरी दृष्टि डाले बिना नहीं मानती । भासुरी समाजका साहित्य, सभा-समिति, शिक्षा-दीक्षा, वेश-भूषा आदि सब कुछ मनुष्यता के आदर्शको नीचा दिखाने तथा उसकी हंसी उड़ाने में ही अपनी बुद्धिमत्ता तथा सार्थकता समझते हैं ।
( अश्लील परिहास न करो )
( अधिक सूत्र ) न नर्मपरीहासः कर्तव्यः । अश्लील परिहास न करे ।
विवरण - अश्लील गंवार परिहास, लघुता, असारता, अगंभीरता, अप्रतिष्ठा, अपमान तथा नीतिभ्रष्टताका परिचायक है । सभ्य समाजको अपने राष्ट्रकी पवित्रताकी रक्षा करनेके लिये अपनी शिक्षाव्यवस्था में मनुष्यतः संरक्षक सत्यानुमोदित शासन करनेवाले शिष्टाचारको महत्व देना चाहिये । शिष्टाचार में चपलता, लघुता, मिथ्यादिखावा, असंयम, मदान्ध भोगियों की अनुकरणप्रियताको प्रवेशाधिकार नहीं मिलता । समाजके सच्चे सेवक ही शिष्ट नाम से सम्मानित होने योग्य हैं । उनका आचार ही शिष्टाचाररूप में सम्मान पानेका अधिकारी है ।
( कारण संग्रह से कार्य सफलता ) कार्यसम्पदं निमित्तानि सूचयन्ति ।। ३२२ ।। कारणसंग्रह ही कार्यकी सफलताकी सूचना देते हैं।
विवरण -- असत्यका विरोध करना ही सत्यरक्षारूपी कार्य है । असत्य विरोधरूपी सत्यरक्षा दी मनुष्यसमाज में सर्वमान्य कर्तव्य है । इस कर्तव्यको स्वीकार करनेकी प्रेरणा देनेवाली प्रेरक भावना ही इस सत्यरक्षारूपी महत्वपूर्ण कार्यका कारण या निमित्त है । भावनाकी जो शुद्धता होती है वही तो कर्तव्यकी सफलताकी सूचना होती है । कर्तव्य में पश्चाताप के अवसरका न रहना ही कर्तव्यकी सफलता है । जो किसी कामको अपने अत्याज्य कर्तव्य के