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शैयार्थी मुहूर्त नहीं देखता
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रूपमें स्वीकार करलेता है वह अपनी भावनाकी शुद्धताको स्वयं अपने मानसनेत्रोंसे देखकर उसके शुभाशुभ भौतिक परिणामोंके विषय में समष्टि रखकर पश्चातापके अतीत होजाता है। कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति गीताके शब्दों में "आत्मन्येवात्मना तुष्टः'' की स्थिति में पहुंचकर असत्यविरोधरूपी धर्मयुद्ध का विजयी योद्धा बनचुका होता है। उसे अपने विजयशील योद्धा बनचुकनेकी सूचना अपने अभ्रान्त कर्तव्यनिर्णय से स्वयं ही मिल जाती है।
(कारणसंग्रहका महत्व ) नक्षत्रादपि निमित्तानि विशेषयन्ति ।। ३२३॥ निमित्त नक्षत्रोंसे भी अधिक महत्व रखते हैं। विवरण मनुष्यसमाजमें किसी शुभ कार्यका प्रारंभ करने के लिये नक्षत्रगतियोंके आधार पर शुभ मुहूर्त देखना प्रचलित है । परन्तु वास्तवि. कताकी दृष्टि में कार्यकी निश्चित सफलताकी सूचना तो यही होती है कि शुभ कार्य में उस कार्य के निमित्तकारण अभ्रान्त हो। निमित्तोंके अभ्रान्त होनेका अभिप्राय यह है कि उस कर्तग्यकी प्रेरणा देनेवाली भावना शुद्ध अटल तथा बलवती हो। जब वर्तमान क्षणके कर्तव्यको इस रीतिसे निश्चित कर लिया जाय फिर उसमें विलम्ब न करके उसे तत्क्षण पाललेना चाहिये। कर्तव्यपालनमें विलम्ब करना ही शुभ मुहूर्तको खोदेना तथा उसे तत्क्षण करडालना ही शुभ मुहूर्तको मुष्टि में निगृहीत करलेना होता है ।
पाठान्तर- नक्षत्रादिनिमित्तानि विशेषयन्ति । नक्षत्र आदि निमित्त भावी घटनाओं की विशेष सूचना देदेते हैं ।
(शैन्यार्थी मुहूर्त नहीं देखता ) न त्वरितस्य नक्षत्रपरीक्षा ॥ ३२४ ।। जिसे किसी कार्यको शीघ्र करना हो वह नक्षत्रपरीक्षाक झगडमें न पडे।