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पापियोंकी निर्लज्जता
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अकृतज्ञता अर्थात् शत्रुता करनेके दूषित स्वभावसे पूर्ण परिचित रहकर, सावधान रहें । वे इस भ्रममें आकर प्रमाद न करें कि “ हम तो इनका उपकार कर रहे हैं इसलिये इनकी मोरसे मानष्टकी कोई संभावना नहीं है, प्रत्युत इटकी संभावना है। हम उन्हें उपकारों के बदले में अपनाकर अपना बनालग।"
(बुद्धिमानका कृतज्ञ स्वभाव )
( अधिक सूत्र ) तद्विपरीतो बुधः ॥ ज्ञानी लोग उपकर्ताके भी अपकारक अशानियोंसे विपरीत आचरण करनेवाले होते हैं। उन्हें उपकर्ताका प्रत्युपकार किये बिना शान्ति नहीं पड़ती।
विवरण- इसी प्रसंगमें लंकाविजयमें महत्वपूर्ण उपकारक श्री हनुमा. नजीके प्रति मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रका कृतज्ञतापूर्ण वक्तव्य सुवर्णा. क्षरों में अंकित करने योग्य है
मययेव जाणतां यातु यत्त्वयोपकृतं हरे।
नरः प्रत्युपकारार्थी विपत्तिमभिकांक्षति ॥ है हनुमान, लंकाविजय और सीताके प्रत्यावर्तनमें आपने जो मेरा उपकार किया है आपका वह उपकार मेरे सिर खडा रहे । मैं चाहता हूँ मुझ सस उपकारका बदला कभी भी न देना पडे । बदल देना चाहनेवाले लोग मित्रको विपग्रस्त देखना चाहते हैं। मित्रको बदला विपत्ति में ही दिया जा सकता है।
( पापियोंकी निर्लज्जता ) न पापकर्मणामाकोशभयम् ॥ १८१ ।। पापियोंको निन्दाका भय नहीं हुआ करता । . विवरण-- पापी लोग कुछ सीमा तक अपने को लोकनिन्दासे बचाते हैं, किन्तु जब लोकनिन्दाकी उपेक्षा करके प्रसिद्ध पापी बनजाने में अधिक लाभ देखते हैं, तब लोकनिन्दाका भय त्यागकर प्रसिद्ध पापी बनने में संकोच नहीं करते। उनकी प्रवृत्ति हीन होजाती है। पापीको निन्दाका भय तब ही होता है, जब उसे उस निन्दासे दण्डित भी होना पड जाता है।