________________
उत्साह के लाभ
सांसारिक भौतिक शक्तिकी उपेक्षा करता और शक्तिमान विजयी बना रहता है । उसके सम्मुख समग्र संसारकी भौतिक शक्तिको हार माननी पड जाती है। इसके विपरीत असत्यनिष्ठ व्यक्तिका दुर्बलहृदय होना अनिवार्य है । मसत्यनिष्ठ व्यक्ति बडीसे बडी भौतिक शक्ति पाकर भी अपनेसे अधिक भौतिक शक्ति के सामने सिर झुकानेके लिये विवश होता है । दृढता सत्यनिष्ठ में ही होनी संभव है ।
१६३
आत्मशक्ति में विश्वासी वही हो सकता है जो अकेला ही समग्र विश्वके विरोधकी उपेक्षा करके विजयी बने रहने में समर्थ होता है । सत्यनिष्ठा से अलग आत्म- पौरुष नामकी कोई वस्तु नहीं है। जिसके पास सत्यनिष्ठा है वह अपने अभिलषित उच्चतम सिंहासनपर आरूढ है 1 उसके उत्साहका सच्चा रूप यही है कि भौतिक जगत् में उसके आसनको डुलानेकी शक्ति नहीं है । सत्यनिष्ठा, सच्चरित्र, इन्द्रियसंयम, कार्याकार्य-विवेक, व्यवहारकुशलता ही राजसिंहासनकी एकमात्र योग्यता और अधिष्ठात्री देवी है । क्योंकि समाजका प्रत्येक नागरिक राज्यशक्तिको संगठित रूप देनेवाला है, इसलिये पहले तो प्रत्येक नागरिकका स्वयं ही उस सत्यनिष्ठारूपी शक्ति से शक्तिमान होना अत्यावश्यक है। इसलिये जो भी कोई व्यक्ति राजा या राज्याधिकारीका निर्वाचन करें वह राज्याधिकारकी संपूर्ण योग्यताको पहले तो अपने में मूर्तिमान करके रखें। इसलिये रखे कि गुणी ही गुणीको पहचानकर उसका निर्वाचन कर सकता है। इसलिये समाजमें राज्याधिकारियोंका निर्वाचन करनेवाली शक्तिका जाग्रत रहना अत्यावश्यक हैं 1
शत्रु लोग पराभव के भय से उत्पादके वशमें आने में ही अपना कल्याण समझने लगते हैं । दृढचित्त लोग शत्रुओं के वशमें न आकर उन्हें ही अपने वश करके छोड़ते हैं। अपनी शक्ति में महत्ता होनेपर ही दूसरोंपर वशीकरण प्राप्त होता है । इसलिये जो संसारपर वशीकार पाना चाहें वे अपने हृदय में उत्साह, अध्यवसाय तथा कार्यसाधनकी जननी सत्यनिष्ठाको सुप्रतिठित करें | सत्यनिष्ठा में ही जन-कल्याण है, जनता जन-कल्याणसे दी