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चाणक्यसूत्राणि
अनिवार्य रूपसे प्रकट करदेती है । इसलिये मनुष्य अपने कर्ममेंसे सत्य तथा धर्मकी हानि न होनेका पूरा ध्यान रखे । पाठान्तर- उपस्थितविनाशः प्रकृत्याकारण कार्यण लक्ष्यते।
उपस्थित पदार्थोका भावी या वर्तमान विनाश पदार्थों के व्यापारों, आकारों तथा परिणामोंको देखकर समझमें जाता है।
( विनाशके चिन्ह ) आत्मविनाशं सूचयत्यधर्मबुद्धिः ॥ २४२ ।। विनाशोन्मुख मानवकी सत्यद्वेषिणी अधर्मवुद्धि ( अधार्मिक कार्योमें प्रवृत्ति ) उसके आत्मघातकी सूचना देती है।
विवरण- अपने सत्यस्वरूपको त्याग देना ही उनका मारमविनाश या आत्मघात है । साधर्मबुद्धिवाले मानवका भाचरण कह देता है कि देखलो लोगो में नष्ट होने जारहा हूँ।
अधर्मेणैधते राजन् ततो भद्राणि पश्यति । ततः सपत्नान् जयति समूलं च विनश्यति ॥
( पिशुनको गुप्त बात न बताओ) ।
पिशुनवादिनो रहस्यम् ॥ २४३ ।। इस सूत्रमें प्रमादसे ' न ' छूट गया है । इसका अर्थ इसके पाठान्तरमें देखना चाहिये।
पाठान्तर- नास्ति पिशुनवादिनो रहस्यम् । पिशुनवादीको बतायी गुप्त बात गुप्त नहीं रह सकती। अथवा- परनिन्दक के पास रहस्य नामकी कोई वस्तु नहीं होती।
परदोषाविष्कारमें लगे रहना परनिन्दकका स्वभाव होता है । वह अपने इस स्वभावसे रहस्य-रक्षाकी कला भूलजाता है । वह सूंघ-सूधकर माखेट हूँढनेवाले कुत्तोंके समान परदोष ढूंढता रहता है। उसके पास गोपनीयता नामकी कोई बात नहीं रहती । ऐसोंसे गोपनीय बात न कहनी चाहिये।